Friday, June 27, 2014

हेलेन केलर के जन्मदिवस पर विशेष उनके ऐतिहासिक उपलब्धि की दास्तान


हेलेन केलर का जन्म 27 जून 1880 को हुआ था। वे पैदाइशी सुंदर और चंचल थीं। परंतु मनुष्य-जीवन में कल का कुछ पता कहां होता है? बस डेढ़ वर्ष की उम्र में हेलेन को ऐसा बुखार पकड़ा कि उन्होंने देखने, सुनने व बोलने की क्षमता हमेशा के लिए खो दी। अब यह तो हुई जीवन की अप्रत्याशित मार, परंतु उन मारों पर विजय पाना और उनसे बाहर आना ही इन्सानी स्पीरिट है। जीवन की मारों से हताश या निराश हो जाना या फिर उन मारों से घबराकर आसरे खोजने लग जाना वास्तविक इन्सान के लक्षण नहीं।

      खैर होगा! हेलेन ने अपनी इन्द्रियां खो चुकने के बावजूद सामान्य जीवन जीना प्रारंभ कर दिया। वह मां का हाथ पकड़कर संसार देखने-समझने में लग गई। इशारों की भाषा सीखने लग गई। और इस तरह धीरे-धीरे अपनी समझ के बल पर उसने सबसे कम्यूनिकेशन बिठाना प्रारंभ कर दिया। जैसे वह मुंह सीधे हिलाए तो ना और ऊपर-नीचे हिलाए तो हां, वगैरह-वगैरह। और फिर तो चार वर्ष की होते-होते वे घर के कामकाज में भी हाथ बंटाने लग गई। कपड़ों की गड़ी करना उन्हें विशेष तौर पर पसंद आने लगा था। आश्चर्य तो यह कि कपड़ों की भीड़ में वे अपने कपड़े अलग से पहचान लेती थीं।

      इसी दरम्यान उनके रसोइए की बेटी मार्था व उनका पालतू कुत्ता उनके मित्र हो गए थे। उनका साथ पाते ही उनका घर के बगीचों व तबेलों में घूमना-फिरना प्रारंभ हो गया था। हेलेन के लिए यह नया अनुभव स्वर्ग के हजारों काल्पनिक अनुभवों से ज्यादा सुखदाई था। मार्था का साथ पाकर वह स्वतः ही कई नए संकेत सीखना भी प्रारंभ कर दी थी। जैसे कांपने का अभिनय करे अर्थात् उसे आइस्क्रीम खाने की इच्छा हो रही है।

      यह सब करते-करते हेलेन सात वर्ष की हो गई। उधर उनकी मां को उसकी प्रतिभा देखते हुए उसे पढ़ाने की इच्छा हुई। हेलेन को कहां इन्कार था? वह तो जीवन आगे बढ़ाना चाहती ही थीं, बस चौदह वर्षीया ऐन नामक टीचर ने हेलेन को घर पर ही पढ़ाना शुरू कर दिया। ऐन का पहला कार्य यही था कि हेलेन चीजों को उनके नाम से पहचाने। उस हेतु वह चीज हेलेन के एक हाथ में रखती व दूसरे हाथ पर क्या रखा है, वह लिखती। कभी गुड़िया तो कभी कुछ और। परंतु न सुन, न देख, न बोल सकने वाली लड़की समझे तो क्या समझे? लेकिन हेलेन भी हेलेन थी। एक दिन जब वह गिरते पानी से खेल रही थी तो ऐन ने तुरंत उसका हाथ पकड़कर उस पर अपनी उंगली से बार-बार वॉटर लिखना चालू कर दिया। बस हेलेन समझ गई कि यह गिरती ठंडी वस्तु वॉटर है।

      ...फिर क्या था, गत्थों पर उभरे शब्दों के सहारे उनपर हाथ फेरकर हेलेन की आगे की पढ़ाई प्रारंभ हो गई। और हेलेन की प्रतिभा व लगन का आलम तो यह था कि देखते-ही-देखते वे हजारों शब्द सीख गई। फिर तो गत्थे पर उभरे शब्दों के सहारे उन्होंने किताबें पढ़ना भी शुरू कर दिया। फिर तो युनिवर्सिटी में दाखिला लेकर वह ग्रेजुऐट भी हो गई। उनकी इस प्रतिभा पर पूरे विश्व ने उन्हें सलाम किया। रातोंरात वे विश्‍व की सबसे चर्चित युवती हो गईं। लेकिन हेलेन को अभी बहुत आगे जाना था। सो उन्होंने ना सिर्फ टाइपिंग सीखी, बल्कि उस टाइपिंग के सहारे कुल बारह किताबें भी लिख डाली। परंतु इतने से भी उन्हें संतोष नहीं था। वे इन्द्रियां खो चुके लोगों के लिए कुछ करना चाहती थीं। इस हेतु उन्होंने बड़ा कष्ट उठाते हुए होंठ हिलाकर शब्दों को अभिव्यक्त करना भी सीखा। ...अब क्या था? कर्मठ हेलेन ने 66 वर्ष की उम्र में अगले ग्यारह वर्ष तक विश्‍व के 35 देशों की यात्रा की। जिस देश में जातीं, वहां के राष्ट्राध्यक्ष ही नहीं बल्कि वहां के अन्य क्षेत्रों की तमाम हस्तियां भी उन्हें सलाम करने पहुंच जाती। और यह सब करते-करते 88 वर्ष की उम्र में हेलेन ने दुनिया को अलविदा किया।

      भले ही हेलेन ने दुनिया को अलविदा कह दिया, परंतु उससे पूर्व दुनिया को उन्हें जो सिखाना था वह सीखा दिया था। मनुष्य अपनी स्पीरिट के बल पर क्या कुछ नहीं कर सकता, यह उन्होंने सिद्ध कर दिया था। जीवन में अप्रत्याशित मुसीबतें व अड़चनें तो आती ही रहती हैं, और इसी का नाम जीवन है। ...परंतु उससे हारकर बैठ जाना मनुष्य को शोभा नहीं देता। ना ही उनसे निकलने हेतु मंदिर-मस्जिद-चर्च में आसरे खोजना ही उसे शोभा देता है। मनुष्य को शोभा तो अपनी स्पीरिट तथा कर्मठता के बल पर तमाम विपरीत बातों पर विजय पाना ही देता है।

      लेकिन हम हैं कि साधारण-से-साधारण बातों में सर पकड़कर बैठ जाते हैं। छोटे नफे-नुकसान, मामूली-सी बीमारी या अपनों से हुई मामूली-सी खटपट से हमारा जीवन अर्थहीन हो जाता है। मंदिर-मस्जिदों में सहायता मांगने पहुंच जाते हैं। मौलवी-पादरियों के तलवे चाटने लग जाते हैं। धागे से लेकर तावीज जो व्यक्ति जो कुछ भी कह दे, पहनने लग जाते हैं। लेकिन हेलेन ने ऐसा कुछ नहीं किया। ना तो वे हताश या निराश हुईं, और ना ही उन्होंने भगवान से कोई शिकायत की। ना ही उन्होंने अपने भाग्य को कोसा और ना ही पादरियों से आश्वासन मांगा। वे तो बस भगवान द्वारा मनुष्य को बख्शी गई अक्षय स्पीरिट के सहारे आगे बढ़ती चली गई।

      आज उनके जन्मदिन पर मैं ऐसी महान हेलेन केलर को स्पीरिट की देवी के रूप में स्वीकारता हूँ। और यह तय करता हूँ कि आगे जीवन में जब भी कोई संकट आएगा, मैं उसे हेलेन के संकट से तौल लूंगा। चाहे जो संघर्ष आ जाए या चाहे जैसा नुकसान हो जाए, निश्चित ही वह हेलेन के तीनों इन्द्रियां खो देने जितना बड़ा तो नहीं ही होगा। बस मैं तुरंत उसे मामूली संकट मानकर अपनी स्पीरिट के बल पर उस पे विजय पाने में लग जाऊंगा। और आप...? शायद आप भी यही करेंगे। यही करना चाहिए। वरना स्पीरिट की देवी की अथक मेहनत और उनकी यह कहानी व्यर्थ चली जाएगी। और उम्मीद है कि आज उनके जन्म-दिवस पर आप ऐसा नहीं होने देंगे।

    - दीप त्रिवेदी

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