आइंस्टाइन
सदी के सबसे बुद्धिमान व्यक्ति हैं, यह हम जानते भी हैं और मानते भी हैं। आज मैं उनके
कार्यों की चर्चा न करते हुए उनके जीवन का एक किस्सा बताता हूँ, जो रोचक होने के साथ-साथ
जीवन को दिशा देने वाला भी है।
आइंस्टाइन
प्रायः मित्रों या पत्नी के साथ ही बाहर डिनर पर जाया करते थे। दरअसल उन्हें क्या ऑर्डर
देना यह समझ नहीं आता था। वे उसपर कभी ध्यान भी नहीं देते थे। लेकिन एक दिन ऐसा हुआ
कि उन्हें अकेले एक रेस्टोरेन्ट में डिनर लेने जाना पड़ा। वेटर ने उन्हें मेन्यू दिया।
आइंस्टाइन ने दो-चार बार उसे उलटा-पलटा, समझने की कोशिश भी करी; पर कुछ समझ में नहीं
आया। अंत में उन्होंने वेटर से ही कहा- भाई मेरी शक्ल देख लो और तुम अपने हिसाब से
जो कुछ खाना मेरे लिए रुचिकर समझते हो, उसका ऑर्डर खुद ही दे दो।
अब इतने
महान वैज्ञानिक, सदी के सबसे ज्यादा बुद्धिमान व्यक्ति और अपने भोजन का ऑर्डर तक नहीं
कर सकते। नहीं ही कर सकते, और यही सीखने का है। मनुष्य के पास बुद्धि एक ही होती है,
चाहे तो उसे छोटी चीजों में वापर लो, और चाहे तो उसे बड़ी चीजों में लगाओ। चाहे तो किसने
क्या कहा व किस घर में क्या चल रहा है जैसी बातों में लगाओ, या चाहो तो उसे अपनी प्रतिभा
को निखारने में लगाओ। लेकिन यह तय जान लो कि बुद्धि यदि छोटी-मोटी बातों में या व्यर्थ
की जगहों पर लगाओगे, तो कभी भी बड़ी व काम की जगह पर उसे नहीं लगा पाओगे। ...बाकी तो
जीवन आपका व निर्णय आपका।
- दीप
त्रिवेदी
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