आज जन्माष्टमी के मौके पर इतना
ही कहूंगा कि मुझे छोड़ो और गीता को पकड़ लो
तुम्हारा
उद्धार हो जाएगा।
बात-बात
पर मुझे क्यों परेशान करते हो?
क्या
भारत में पैदा होकर मैंने कोई गुनाह कर लिया है?
जो
व्यक्ति अपने पूरे 108 वर्ष के जीवन में कभी क्षणभर को भी किसी जगह
किसी
वस्तु या किसी व्यक्ति से नहीं बंधा
उसे
घर-घर व गली-गली में मंदिर बनाकर
किस
बिना पर आप लोगों ने बंद कर दिया है?
खुद
मुक्त नहीं हो सकते तो न सही, पर मुझे तो मुक्त करो
मैं,
जो जीते-जी हमेशा मुक्त आकाश में उड़ता रहा
उसे
मृत्यु के पश्चात् यह नजर-कैद क्यों?
मेरे
जीवन से कुछ सीख सकते हो तो सीख लो
...वरना
कम-से-कम मुझे तो माफ करो।
- दीप
त्रिवेदी
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