यदि
हां, तो आपको अपने सारे भेद मिटा देने होंगे। जैसे प्रकृति बिना भेदभाव के सबको बराबरी
पर अंगीकार किए हुए है, ठीक वैसे ही आपको भी धर्म, जाति, गुणी-निगुर्णी, अच्छे-बुरे
के वे सारे भेद मिटा देने होंगे जो मनुष्य को मनुष्य से अलग करते हों। जब तक कोई अपने
मन को इस ऊंचाई तक नहीं पहुंचा लेता, उसमें वास्तविक धर्म का अंश भी पैदा नहीं हो सकता
है। यह ध्यान रख ही लेना कि भेद करनेवाला किसी भी धर्म का कितना ही बड़ा धर्मगुरु क्यों
न हो, वह वास्तव में धार्मिक नहीं ही है। क्योंकि वास्तविक धर्म की पहली सीढ़ी ही सम्पूर्ण
मनुष्यता को बिना भेदभाव के अपनाना है।
...अब
यह धर्मगुरु धार्मिक नहीं होते तो मत होने दो। परंतु आप तो भगवान के सच्चे भक्त हैं,
आप तो अपने मन से सारे भेदभाव मिटा ही दो।
- दीप त्रिवेदी
No comments:
Post a Comment