किशोरकुमार
उस आवाज का नाम है जिनका जादू भारत ही नहीं, दुनिया के कई देशों में फैला हुआ है। आज
मैं किशोरकुमार के जीवन का कोई किस्सा आपको सुनाने नहीं जा रहा हूँ, बल्कि उनके जीवन
के एक ऐसे दर्द से आपको मिलवाने जा रहा हूँ, जिस ओर शायद ही किसी की निगाह गई है।
खंडवा
में पले और बढ़े तथा इन्दौर में पढ़े किशोरकुमार को बचपन से गायकी व मिमिक्री का बड़ा
शौक था। जब वे कुछ बड़े हुए तब तक उनके बड़े भाई अशोककुमार भारतीय फिल्म जगत का एक बहुत
बड़ा नाम हो चुके थे। किशोरकुमार को गायकी का शौक था ही, बस वे भी हाथ आजमाने बम्बई
पहुंच गए। लेकिन काफी प्रयत्नों के बाद भी उन्हें गाने का मौका नहीं मिला। यहां तक
कि खुद अशोककुमार को उनकी आवाज पसंद नहीं थी। लेकिन किशोरकुमार तो जानते ही थे कि वे
किस आवाज के मालिक हैं। परंतु उनके जानने से होना क्या था, उन्हें प्लेबैक-सिंगिंग
का मौका नहीं मिला...तो नहीं ही मिला। उन दिनों एक ही आवाज चलती थी, रफी साहब की।
अब
कुछ तो करना ही था, सो अपने बड़े भाई अशोककुमार के दबाव में वे अभिनेता बन गए। अभिनेता
बनने का एक सीधा फायदा यह था कि उन्हें अपने गाने गाने का मौका मिल जाता था। लेकिन
कई बार वहां भी दाव हो जाता था। उनके खुद के अभिनीत किए गाने भी उन दिनों लोगों ने
रफी साहब से गवाए थे। अब यह कोई छोटा-मोटा दर्द नहीं था जो उन्हें सहना पड़ रहा था।
हालांकि फिर देवानंद ने जरूर उनसे अपने कई गाने गवाए। इस तरह देवानंद के जरिए उन दिनों
उनका प्लेबैक सिंगिंग का शौक पूरा हो रहा था। लेकिन बाकी कोई उनसे एक भी गाना नहीं
गवा रहा था। अर्थात् उन्हें प्लेबैक-सिंगर नहीं माना जा रहा था। और यह सिलसिला करीब
बीस वर्ष लंबा चला। ...यानी बीस वर्ष वे ऐसा गहरा दर्द अपने दिल में बसाए जीए, जहां
प्रतिभा तो थी परंतु प्रतिभा की स्वीकृति नहीं थी। खैर, तब कहीं जाकर सन् 1969 में
आराधना आई। और उन्हें एक प्लेबैक-सिंगर के रूप में स्वीकारा गया। और एकबार स्वीकारा
गया तो फिर उनके आवाज का जादू भी पूरे देश में छा गया।
सवाल
यह कि वे इस आवाज के मालिक तो जब से मुंबई सिंगर बनने आए थे तब से थे। परंतु फिर भी
20 वर्ष तक नकारे जाने का दर्द झेलते रहे। क्या आप कभी उस दर्द की कल्पना कर सकते हैं?
नहीं कर सकते तो कर लो, और साफ सुन लो- यदि दर्द पालना ही है तो कोई ऐसा दर्द पालकर
जीओ। उसका भी अपना एक अलग ही मजा है। परंतु यह जो बात-बात पर दिन में दसियों बार दुःखी
हो जाते हो, उसे छोड़ो। क्योंकि यह ध्यान रख लेना कि बात-बात पर दर्द पालनेवाले को कभी
कोई बड़ा दर्द पालने का मौका कुदरत से नहीं मिलता है। क्योंकि कुदरत से दर्द भी मनुष्य
की क्षमतानुसार ही मिलता है। कुदरत जानती है कि छोटे-मोटे दर्द पालनेवाला कभी बड़ा दर्द
नहीं झेल पाएगा; ...मर जाएगा। लेकिन यह ध्यान रख लो कि बड़ा दर्द पालने की क्षमता जगाए
बगैर कोई बड़ा नहीं बन सकता है। अतः यह बात-बिना-बात दुःखी होने की आदत छोड़ दो। जब भी
कोई दर्द पकड़े, देख लो कि किशोरकुमार के दर्द के सामने आपके दर्द की बिसात क्या है?
कुछ नहीं...। तो फिर रोते क्यों हो? जब किशोरकुमार इतना गहरा दर्द पालकर भी महान कोमेडियन
हो सकते हैं, तो फिर आप बेमतलब के ये सारे दर्द पालना छोड़कर मस्ती से जी तो सकते ही
हैं। बस महान किशोरकुमार से यह सीख लो, सब सीख जाओगे।
- दीप त्रिवेदी
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