Sunday, January 11, 2015

क्या आप अपने को बुद्ध, क्राइस्ट या कृष्ण से भी महान समझते हो?


आप कहेंगे कि क्या बात करते हैं? इन सबको तो हम भगवान मानते हैं। हममें तो उनका अंश भी नहीं। हम सपने में भी उनसे अपनी तुलना करने की नहीं सोच सकते हैं। लेकिन मैं आपसे कह दूं कि सौ में से निन्यानवे अपने को उनसे महान माने जी रहे होते हैं। चौंकिए मत, मैं कोई भी बात ऐसे ही नहीं कहता। और अच्छी सायकोलोजी ही वह है जो कहने के साथ ही सिद्ध होती चली जाए।

   सो सोचो हर किसी का दर्द क्या है? यही न कि मैं इतना सीधा और अच्छा हूँ फिर भी कोई मुझे समझता नहीं है। मैं सबका अच्छा करता हूँ पर मेरा सब खराब कर जाते हैं। मेरे दिल की भावना कोई समझता ही नहीं है। मुझे अपने किए का कोई श्रेय नहीं मिलता है। इतना सब करने के बाद भी बात-बात पर हरकोई मेरे लिए गलत सोचता है।

   चलो मान लिया। पर अब यह बताओ कि क्राइस्ट को सूली पर क्यों लटकाया गया? बुद्ध का जगह-जगह व गांव-गांव में अपमान क्यों किया गया? कृष्ण को अनेकों बार भरी सभा में अनपढ़, ग्वाला, धोखेबाज, कपटी, चकरीबाज, झूठा वगैरह कहकर क्यों बुलाया गया? क्योंकि उन्हें कोई समझा नहीं था। अब थोड़ा सोचो यह कि जब उनके जीते जी कोई उन्हें नहीं समझा तो आप यह अपेक्षा क्यों कर रहे हैं कि कोई आपको समझे? चलो यह तो हुई टेक्निकल बात, परंतु इसका सायकोलोजिकल पहलू यही कि कहीं-न-कहीं अपने भीतर आप अपने को इनसे महान समझते ही हैं। वरना ऐसी अपेक्षा करते ही नहीं।

   खैर, जो हो गया उसे भूल जाओ। पर आगे अपने से अपने को सर्टीफिकेट देना सीख जाओ, और उसी से संतुष्ट रहो। क्योंकि दुनिया के इतिहास में एक मनुष्य के दूसरे को समझने का कोई रिकार्ड नहीं।

- दीप त्रिवेदी

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