वैसे तो कृष्ण सम्पूर्ण व्यक्तित्व के मालिक हैं। प्रेम, ज्ञान व ध्यान
की तो वे बहती गंगा हैं। उनसे कोई चूक की गुंजाइश ही नहीं। परंतु आजकल यह धर्म के नाम
पर, तथा उलझनों से निकलने हेतु भिन्न-भिन्न उपाय बताए जाने के नाम पर जो कुछ चल रहा
है उसे देख कभी-कभी शंका हो ही जाती है।
अर्जुन कष्ट में था, द्वंद में
फंसा हुआ था, आगे क्या होगा नहीं जानता था, उसने कृष्ण से उपाय पूछा। कृष्ण ने उसे
पूरी-की-पूरी गीता कही जिसका सार यही था कि उसे यह सब अपनी गलत मनोदशा के कारण भुगतना
पड़ रहा है। और कृष्ण ने पूरी गीता में उसकी मनोदशा ठीक करने की कोशिश की। उसे पूरी
गीता के दरम्यान अपनी मनोदशा ठीक करने के ही उपाय बताए। उन्होेंने अर्जुन को न तो कोई
धागा पहनाया, न उपवास करने की सलाह दी। ना तो उन्होंने अर्जुन को फिर से अच्छे मुहूर्त
में निकलने की सलाह दी, और ना ही कोई मंदिर हो आने को कहा। और ना कोई मंत्र दिया कि
जिस के जाप से उसका उद्धार हो जाए। कृष्ण की तो सीधी बात यही थी कि मनोदशा गलत हो जाने
के कारण अर्जुन पर वर्तमान संकट आया था, और वह मनोदशा ठीक होने से ही दूर हो सकता था।
अब इसका सीधा अर्थ तो यही हुआ
कि या तो कृष्ण से कोई चूक हो गई है, या ये धर्म के ठेकेदार अपनी दुकानें चलाने हेतु
हमें भ्रमित कर रहे हैं। अब कृष्ण से तो कोई चूक होने से रही, अर्थात् ये धर्म के ठेकेदार
ही कुछ करने से कुछ मिलेगा नाम की भिन्न-भिन्न लालच की पुड़िया बांट रहे हैं। लेकिन
उसके परिणाम न तो आ रहे हैं और ना ही आ सकते हैं। क्योंकि हम पर आए संकट हेतु हमारी
बिगड़ी मनोदशाएं जिम्मेदार हैं, अतः कृष्ण के कहे अनुसार हम अपनी मनोदशाएं सुधारकर ही
तमाम संकटों से बाहर आ सकते हैं।
सो भगवद्गीता पढ़ो, कृष्ण पर
विश्वास करो, अपनी मनोदशा सुधारने पर ध्यान दो...और जगत में सुख व सफलता के शिखर चूमते
हुए विचरण करो।
- दीप त्रिवेदी
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