आपने कभी इस चीज पर ध्यान नहीं दिया होगा परंतु
अब दे देना। आपकी हर ‘हां’ में ‘ना’ छिपी होती है और हर ना में भी कुछ-न-कुछ हां छिपी
ही होती है। जब कोई आपसे पूछता है कि बाहर डिनर पर चलना है, तो आप ना कह देते हैं परंतु
गौर करना उस ना में भी कहीं-न-कहीं हां छिपी ही होती है। और सबूत यह कि उसके दो-चार
बार और कहने पर आप खुशी-खुशी राजी हो जाते हैं। ऐसे ही आप जब किसी-से “आय लव यू” भी
कहते हैं तो थोड़ा उस समय अपने भीतर झांक लेना, आप भीतर कहीं-न-कहीं “नहीं-नहीं, प्यार
नहीं करना” भी छिपा पाएंगे ही।
अब
ऐसी कमजोर ‘हां’ और ऐसी कमजोर ‘ना’ का मतलब क्या है? ऐसी कमजोर हां और ना से कहीं खशबू
आती है? खुशबू तो मजबूत हां और मजबूत ना से आती है। हमारे अंदर भी दिल नामक एक फूल
है जिसमें मजबूत हां या ना से जीने पर या कार्य करने पर महक पैदा होती है। और उसी मजबूत
हां या ना से पैदा हुई महक फिर पूरे विश्व में फैल जाती है।
उदाहरण
के तौर पर कहूं तो क्राइस्ट, मोहम्मद, मीरा, कबीर ये सब चन्द ऐसे लोग हैं जिनकी हां
में मजबूती थी। यानी ईश्वर ना सिर्फ है, बल्कि बस वही है। और ऐसे ही बुद्ध, कृष्ण वगैरह
की मजबूत ना थी कि ईश्वर है ही नहीं बस मैं ही मैं हूँ। हमने दोनों को बराबरी पर स्वीकारा
और माना। क्योंकि थोड़ा ध्यान करेंगे तो पाएंगे कि मजबूत हां या ना में कोई फर्क नहीं
होता है।
खैर,
इस हां और ना के मामले में थोड़ा नीचे उतर आऊं। क्योंकि अभी हमारी समस्या बुद्ध और क्राइस्ट
से काफी निचले स्तर की है। तो एडीसन के उदाहरण से ही समझाऊं। एडीसन कैसे इतने महान
वैज्ञानिक बने? सिर्फ अपनी हां और ना की मजबूती से। वे जब भी प्रयोगशाला में घुसते
तो प्रयोगों को उनकी सौ फीसदी हां होती थी और उस समय परिवार, समाज, मित्र, रूटीन या
स्वास्थ्य को सौ फीसदी ना होती थी। बस इस सौ फीसदी के पक्के विभाजन ने उन्हें एडीसन
बना दिया। ...यही मैं आपसे कह रहा हूँ कि सौ फीसदी हां या ना की आदत से आपके भीतर से
वह महक पैदा होगी कि जिसकी खुशबू पूरे विश्व में फैल जाएगी।
...वरना
हां में ना और ना में हां से तो आपका हृदय कागज का हो जाएगा। फिर उससे महक निकलना तो
छोड़ो, उसकी बदबू से आप अपने में ही मरे-मरे महसूस करने लगेंगे। सो, आज से मजबूत हां
और मजबूत ना में जीना प्रारंभ कर दो।
- दीप त्रिवेदी
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