Friday, February 27, 2015

मैं तो ठगा ही गया पर आप चेत सकते हो तो चेतो


मैंने अभी-अभी शरीर छोड़ा है। पता नहीं मैं कहा पहुंच गया हूँ। पर जहां भी पहुंचा हूँ इतना बता दूं कि यहां हर मिनट हजारों लोग आ रहे हैं। वे ना सिर्फ अलग-अलग देश-दुनिया से आ रहे हैं बल्कि भिन्न-भिन्न धर्मों के व नास्तिक भी आ रहे हैं। बारी-बारी यहां सबका हिसाब हो रहा है, परंतु उस हिसाब-किताब में धर्म या देश के आधार पर कोई छूट या कटौती नहीं मिल रही है। मैं तो ठगा ही गया। मैंने तो अपना पूरा जीवन अपने संप्रदाय के नियमानुसार बिताया। न जाने कितना धन और समय उस पर लुटाया। इस चक्कर में न जाने कितने अच्छे लोगों को पराया माना। न जाने कितने योग्य लोगों से दूर-दूर रहा। ऊपर कुछ लाभ मिलेगा यह सोच कितनी नफरत सबके लिए अपने मन में पाली। और आज यहां हम सब साथ-साथ ही खड़े हैं। यहां ना तो उनसे दूरी का कोई एहसास हो रहा है, और ना ही उनसे दूर रहने का कोई उपाय ही है। जिस मजहब पर जीवन लुटाया उसकी सिखाई सारी बातें आज यहां कदम रखते ही झूठी हो गई है। मैं तो व्यर्थ में ठगा गया, लेकिन आपके पास अभी वक्त है, चेत सकते हो तो चेत जाओ, वरना नीचे तो सबकुछ लुटा ही दोगे यहां ऊपर भी हाथ कुछ नहीं आएगा। सो जहां परमानेन्ट रहना है वहां जब विभाजन नहीं तो फिर साठ-सत्तर वर्ष जहां बिताना है वहां इतने मनमुटाव व दुराव से क्यों जीना? सो अपने अनुभव से कहता हूँ कि मनुष्य-मनुष्य में भेदभाव मत करो, इसी में आपकी भलाई है।

- दीप त्रिवेदी

No comments:

Post a Comment