Monday, December 2, 2013

मैं ऐसी क्यों हूँ?



-    अरे तुम इतनी उदास क्यों हो?
 -    कुछ नहीं, बस अपने-आप से हताश हूँ।
 -    क्यों?
 -    देखो न, सभी लोग कितनी बातचीत करते हैं, कितना चहकते हैं
     पर मेरे से बात ही नहीं होती
     जरूरत से ज्यादा शर्मिली हूँ
     मैं भी सबके जैसी बनना चाहती हूँ
     ...प्रयास भी किए, पर हो नहीं पा रहा।

 -    तो इसमें उदासी की क्या बात है?
     तुम जैसी हो, वैसी हो
     बातचीत नहीं कर पाती न सही, तुम्हारा अपना सर्कल तो है
     देखो, हर मनुष्य अलग होता है और
     उसे, वह जैसा है, उससे ही संतोष मानकर जीना चाहिए।
    
     आपको कभी अपने पर्सनलिटी-परिवर्तन की कोशिश जबरदस्ती नहीं करनी चाहिए
     क्योंकि इस प्रक्रिया में ही आपका आप पर से कॉन्फिडेंस उठ जाता है
     हां, जीवन की प्रोसेस में आप स्वतः जितना बदल जाएं, ठीक है
     यह ध्यान रख लेना कि हर फूल की अपनी एक अलग खुशबू होती है।
    
     हीरा हो या पत्थर, दोनों अपनी-अपनी जगह पर महत्वपूर्ण हैं ही
     उलटा सच तो यह है कि- हीरों से घर नहीं बनाया जा सकता है
     परंतु पत्थर सजाने के काम आ जाता है।
    
     अतः जीवन में सब करना पर अपने होने के तरीके से नाराज कभी मत रहना
     क्योंकि इस जगत में जिसने भी स्वयं को वो जैसा है वैसा स्वीकारा है
     उसने ही पूरे आत्मविश्वास से दुनिया में सफलता के झंड़े गाड़े हैं।

 -    यह हुई न बात! अब अपने से कोई गिला नहीं
     मैं कम बोलती हूँ तो कम बोलती हूँ पर समझती तो दूसरों से ज्यादा हूँ।
 



No comments:

Post a Comment