वॉल्ट डिज्नी का जन्म 5 दिसम्बर 1901 को हुआ था। उनके पिता
इलियास कर्मठ तो थे परंतु बावजूद इसके उनका व्यवसाय नहीं जम पा रहा था। अतः वॉल्ट का
बचपन साधारण ही गुजर रहा था। न खेलने को खिलौने थे न अच्छे वस्त्र। तभी सात वर्ष की
उम्र में उनकी जिन्दगी में एक नया मोड़ आया। उनकी चाची माग्रेट ने उन्हें रंगीन स्केच
पैड तथा कुछ रंगीन पेन्सिलें भेंट में दी। अब जिसने कोई खिलौना ही न देखा हो उसके लिए
तो यह मानो सारे सपने पूरे होने जैसा हो गया। और यहीं से उन्हें स्केचिंग का शौक जागा।
उधर कुछ बड़े होते-होते उन्हें स्कूल में भरती
करवाया गया। परंतु घर की हालत ऐसी थी कि स्कूल जाने के पहले वॉल्ट को सुबह-सुबह अखबार
व अंडे बेचने जाना पड़ता था। दिनभर का यह हेक्टिक शेड्यूल वॉल्ट को बड़ा थका देता था।
वैसे यह कष्ट उन्हें लंबा नहीं झेलना पड़ा। घर के हालात ने उनकी स्कूल जल्द ही छुड़वा
दी। और उसके साथ ही वे पूरी तरह से पिता के साथ कामकाज में लग गए। लेकिन इधर घर-घर
जाकर अंडे व अखबार बेचने ने उन्हें कई कड़वे अनुभव भी दिए। सड़कों और घरों में उनके स्कूल
के कई मित्र टकराने लग गए। निश्चित ही यह बड़ा ही एम्बैरेसिंग था, परंतु वॉल्ट हंसते-हंसते
यह सब सह लेते थे। कभी किसी बच्चे को खिलौने से खेलते देखते तो क्षणभर को दुःख पकड़
लेता, लेकिन फिर जीवन की वास्तविकता स्वीकार लेते। परंतु परिस्थिति वाकई कठिन थी। खिलौने
नहीं थे न सही, परंतु खेलने-कूदने के लिए कोई मित्र भी नहीं था। बस अपना मन बहलाने
हेतु जब भी मौका मिलता घर के पास से गुजरती ट्रेन देखकर उसका स्केच बनाया करते थे।
और यहीं से स्केच बनाना उनका शौक व ट्रेन उनकी ड्रीम बनकर उभरा।
लेकिन जीवन की कठिनाई ने उनसे ये दोनों भी छीन
लिए। उन्हें पिता के साथ भी अनेक कार्य करने पड़ रहे थे और कुछ बड़े होने पर अनेक नौकरियां
भी करनी पड़ी। सत्रह वर्ष की उम्र में वे रेड क्रॉस में भरती हो गए और उनके चिकित्सकों
की टीम के साथ एक वर्ष के लिए फ्रांस गए। वहां उन्हें फिर स्केच बनाने का मौका मिला।
काम से फुसर्त मिलते ही वे वहां अपने साथियों के पोट्रेट बनाने लग जाते थे। परंतु इतने-मात्र
से वॉल्ट का शौक कहां पूरा होना था? सो वापस आकर उन्होंने अपने इसी शौक को जीवन का
सहारा बनाने की ठान ली। फिर तो अखबार में कार्टूनिस्ट की नौकरी भी की और एनिमेशन भी
सीखा। अपने कई एनिमेशन स्टूडियो भी खोले, लेकिन एक या दूसरे कारण से सभी बंद हो गए।
फिर भी वॉल्ट हताश नहीं हुए। उन्हें अपने शौक व प्रतिभा दोनों पर विश्वास था। और आखिर
23 वर्ष के होते-होते वॉल्ट ने हॉलीवुड में ही हाथ आजमाने की सोच ली। निश्चित ही वहां
कुछ भी आसान नहीं था। लेकिन वॉल्ट के शौक और प्रतिभा के सामने आखिर हॉलीवुड को उन्हें
स्वीकारना पड़ा। फिर जो इतिहास रचा गया वह किसी-से छिपा नहीं है।
खैर! यह सब तो ठीक परंतु असली बात तो यहीं से
शुरू होती है। अब जबकि वॉल्ट के पास पैसों की कोई कमी नहीं थी। वे एनिमेशन किंग होने
के नाते अपने ड्राइंग के शौक के सर्वोच्च शिखर पर भी बैठे ही हुए थे। बस जीवन के इस
हसीन मोड़ पर उन्हें अपने ड्रीम की याद आई। ...जी हां ट्रेन की। बस उन्होंने एक विशाल
फार्म खरीदकर वहां 1400 फीट लंबी ट्रेन की लाइन बिछाई और तमाम आधुनिक सुविधाओं से सज्ज
ट्रेन उन पटरियों पर दौड़ा भी दी। वे अक्सर डिनर चलती ट्रेन के डब्बों में ही किया करते
थे। उनकी यह ट्रेन पूरे हॉलीवुड में मशहूर हो गई। उस ट्रेन में डिनर करना पूरे हॉलीवुड
में बड़ा सम्मान माना जाने लगा। परंतु वॉल्ट यहां भी नहीं रुके। उनका अपना सपना तो साकार
हो गया था, परंतु संसार का क्या? उन्हें तो बचपन में खेलने का सुख नहीं मिला था परंतु
विश्व के बच्चे तो खेले। बस उन्होंने 160 एकड़ जमीन पर विशाल डिज्नीलैंड बना दिया।
अब यह पूरी दास्तान सुनने के बाद आप ही फैसला
कीजिए कि मैं वॉल्ट को शौक पालने व सपने देखने का बादशाह क्यों न कहूं? अधिकतम संभावित
विपरीत परिस्थितियों में से गुजरने के बावजूद उन्होंने अपने शौक व सपने दोनों के सर्वोच्च
शिखर को छुआ। वॉल्ट की यह जीवनगाथा उनकी कर्मठता, उनके इरादे की दृढ़ता के साथ-साथ उनकी
एकिन्द्रियता की ओर भी हमारा ध्यान आकर्षित कराती है। वाकई जीवन में यदि एक ही शौक
पाला जाए या एक ही सपना देखा जाए और फिर पूरी कर्मठता से उसमें भिड़ा जाए तो कौन वॉल्ट
डिज्नी नहीं बन सकता है? बाकी तो हजार शौक पालने व हजार सपने देखने वाले हम जैसों का
हाल किसी से छिपा नहीं हैं।
होगा, आज तो उनके जन्मदिवस पर मैं शौक और सपनों
के बादशाह वॉल्ट डिज्नी को सलाम करता हूँ।
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