- अरे भाई
भय, तुम बात-बात पे मुझे पकड़ लेते हो।
अब भला
डरा हुआ आदमी करेगा क्या?
सो, मैं
तुमसे छुटकारा चाहता हूँ। कृपया उपाय बताओ।
- देखो, तुमने
पूछा है तो तुमको मुझसे जान छुड़ाने के दो सबसे अक्सीर उपाय बता देता हूँ। एक तो यह
समझ लो कि मनुष्य के सारे भयों की जड़ में मौत का डर ही होता है। और मौत अटल है। वह
आज नहीं तो कल आने ही वाली है। फिर उसका डर क्यों पालना? बस मौत का डर हटा दोगे तो
आपके आधे भय ऐसे ही तिरोहित हो जाएंगे।
दूसरा,
मनुष्य भय पकड़ता है भविष्य का सोचकर। यहां भी आपको यह सोचना है कि भविष्य सदैव से एक
पहेली रहा है। सो उसे अपने हिसाब से बुझने दो। बस, जैसे ही आप भविष्य की चिंता करना
बन्द कर देंगे, आपके बचे हुए भय भी तिरोहित हो जाएंगे। और भयमुक्त मनुष्य कहां-से-कहां
पहुंच सकता है, यह तो आप जानते ही हैं।
- वाह! आपने
तो मुझे संजीवनी ही दे दी। अब मैं कभी किसी बात से नहीं डरूंगा। आज के बाद बस मस्ती
से जीऊंगा। वाकई डर-डर कर तो जीना ही भूल गया था।
-
दीप त्रिवेदी
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