आज विल्बर राइट का जन्मदिन है। यह तो
आप सभी जानते ही होंगे कि विल्बर और ओरविल राइट ने मिलकर मनुष्य के उड़ने का सपना
साकार किया था। लेकिन यह बात बहुत कम लोग जानते होंगे उड़ान की यह दास्तान उनके बचपन
से ही शुरू हो गई थी। जब एक दिन उनके पिता ने उन दोनों को अल फेन्सो पैनोड द्वारा निर्मित
खिलौने का एक हेलिकॉप्टर भेंट में दिया था। उसी दिन दोनों के मन में उड़ान भरने के सपने
ने जन्म ले लिया था।
हालांकि
परिवार की हालत ऐसी नहीं थी कि विल्बर या ओरविल ज्यादा पढ़ सकें। उलटा जीवन निर्वाह
हेतु उन्हें छोटी उम्र में ही सायकल रिपेयरिंग की एक दुकान खोलनी पड़ी थी। लेकिन यह
तो परिस्थिति की मार हुई। उसका विल्बर और ओरविल की उड़ान संबंधी इरादों पर कोई असर नहीं
पड़ा था, सिर्फ एक ब्रेक लगी थी। ठीक है, इस वक्त मौका नहीं; परंतु वक्त ने साथ दिया
तो उड़ने का सपना साकार करना ही था। ...और एक दिन मेहनत करके पेट भरने वाले, और सामान्य
पढ़े-लिखे बच्चों ने मनुष्य को उड़ा ही दिया। मैं दोनों बंधुओं की दृढ़ता और बुद्धिमानी
को सलाम करता हूँ।
वैसे
इस छोटी-सी बात में बहुत कुछ सीखने जैसा है। सपने देखना व इरादे पालना अच्छी चीज है
परंतु परिस्थिति साथ न दे रही हो तो भी उसमें भिड़ जाना मूर्खता है। सपने संजोए जरूर
जाते हैं, पर उसके कारण जीवन की वास्तविकता पर से नजर नहीं हटाई जा सकती है। यह ध्यान
रखना ही होता है कि सपने पूरे करने का पूरा खेल टाइमिंग का है।
दूसरी
बात आपने अगर कोई इरादा किया है तो उसे कभी भूलना नहीं चाहिए। सिर्फ सही वक्त का इंतजार
करना चाहिए, और मौका मिलते ही उस पर टूट पड़ना चाहिए। यही राइट बंधुओं ने किया। उनके
हवाई जहाज बनाने की दास्तान व उनका जीवन पढ़ना चाहिए। इतना सीखने को मिलेगा कि जो शायद
बड़े-से-बड़े धर्मशास्त्रों से भी आपको सीखने को न मिले।
और
तीसरी व महत्वपूर्ण बात यह ध्यान रखें कि बच्चों का मन बड़ा कोरा होता है। अतः उनके
सामने बातें भी सोच-समझकर करो और उन्हें भेंट भी सोच-समझकर दो। वे ना सिर्फ चीजों को
जल्दी ग्रहण करते हैं, बल्कि इरादे भी तुरंत बना लेते हैं। ...यानी बच्चों को दिशा
भी बचपन में ही मिलती है, और उनके साथ गड़बड़ भी बचपन में ही कर दी जाती है। सो, अपने
बच्चों को राइट-ब्रदर्स बनाना चाहते हो, तो उनके साथ वर्ताव बड़ा सोच-समझकर करो। उन्हें
भेंट उत्साह बढ़ाने वाली दो और बातें विश्वास बढ़ाने वाली करो। डराने वाली बातें उनसे
कभी मत करो, ना ही भटकाने वाली भेंट ही उन्हें दो।
- दीप
त्रिवेदी
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