यह
वाकई बड़ी अजीब बात है। जिसे देखो वह कह देता है, यार कल मेरे साथ बड़ा बुरा हुआ। भाई
क्या बुरा हुआ? तुमने कैसे तय कर लिया कि वह वाकई बुरा हुआ है? और कभी कहते हैं-आज
तो कमाल हो गया। भाई, क्या कमाल हो गया?
मानो
कि कोई नौसिखिया चोर पहली बार चोरी करने गया हो और न पकड़ा जाए। आपकी सोच से यह चोर
के लिए अच्छा हुआ। परंतु बाद में दो-तीन और चोरियां उसने की। फिर भी नहीं पकड़ा गया।
यह तो कमाल हो गया। लेकिन फिर यह हुआ कि उसका उत्साह इतना बढ़ गया कि अगली चोरी के वक्त
उससे खून हो गया और वह पकड़ा गया। आजीवन कारावास की सजा हो गई।
अब तय
करो कि पहली बार उसका न पकड़ा जाना अच्छा हुआ या बुरा हुआ? बस ऐसे ही आपके सब अच्छे-बुरे
हैं। अतः मेहरबानीकर आपका अच्छा हुआ या बुरा यह तय करने की कुदरत की सत्ता पर विचार
करने की बजाए जो घट गया उसे स्वीकारने और उससे कुछ सबक सीखने पर आपनी निगाह लगाओ, आपका
उद्धार हो जाएगा।
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दीप त्रिवेदी
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