एक दिन लाखों की तादाद में चींटियां एक स्थान पर एकत्रित हो
गई। वे अपनी वर्तमान हालात का दुःखड़ा बांटने एकत्रित हुई थी। खासकर वे अपनी जनसंख्या
व आकार को लेकर चिंतित थी। और परेशान इस बात से भी थी कि जरा-सा किसी ने पांव रखा नहीं
कि मर जाती हैं। न ज्यादा कुछ खा पाती हैं और ना ही कुछ पी पाती हैं। और लंबा जी भी
नहीं पाती। कुल-मिलाकर परेशानी यही थी कि आखिर हमें ही ऐसा जीवन क्यों?
अब बात तो महत्वपूर्ण थी, परंतु इसका कारण पता
लगाना कोई आसान थोड़े ही था। और फिर बेचारी चींटियां सोच-सोच के सोच भी कितना लेती?
लेकिन हुआ यह कि वे सोच-विचार कर ही रही थी कि वहां से एक मनुष्य-जानवर रिलेशनशिप पर
काफी कार्य कर चुका एक सायकोलोजिस्ट गुजरा। चींटियों की चर्चा सुनते ही उसे हंसी आ
गई। उसने यूं भी मनुष्य और चींटियों के संबंध में काफी शोध किया था। उसने सोचा, क्यों
न इन चींटियों की तमाम उलझनों का समाधान करता चलूं?
...बस उसने वहां एकत्रित हुई लाखों चींटियों
को संबोधित करते हुए कहा- परेशान न हो मेरी बहनों। दरअसल आपकी यह हालत और आपका यह आकार
आपको मनुष्य-जन्म में की गई भूलों के कारण नसीब हुआ है। आपको मनुष्य-जन्म में जो एक
मनुष्य के आधार पर जीना था, उसके बदले आपने अपने-अपने संप्रदाय बना लिए। अपने को हिंदू,
मुस्लिम, इसाई, बौद्ध वगैरह की भीड़ में बांट लिया। बात-बात पर डर-डर कर जीने लगे। उपवास
और रोजों के नाम पर भूखों मरने लगे। ...बस चींटियों के स्वरूप में आ गए। जब खाना ही
नहीं तो बड़े पेट की आवश्यकता ही क्या? जब जीना ही नहीं तो बड़े जीवन की आवश्यकता क्या?
और देखो, आज भी तुम लोग संप्रदायों की तर्ज पर कॉलोनी के आधार पर भीड़-की-भीड़ बनाए एक-दूसरे
के पीछे चलती रहती हो। अतः ध्यान रख लो, जैसे छिपकिली डायनासोर का सूक्ष्म स्वरूप है,
वैसे ही तुम चींटियां संकुचित मानसिकता वाले मनुष्यों का सूक्ष्म स्वरूप हो। तुम्हारा
तो ठीक है। परंतु एक के पीछे एक की भीड़ बनाने वाले मनुष्य इससे सावधान हो जाएं।
- दीप त्रिवेदी
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