यह
मत समझना कि सिर्फ धर्मों को लेकर ही कट्टरता होती है। नहीं, धर्म तो एक बहाना है...बाकी
होती तो कट्टरता एक मानसिकता ही है। धर्म नहीं तो जाति की ही सही। सिद्धांतों या विचारों
की ही सही। दरअसल दूसरों से आपके अनुसार चलने की किसी भी प्रकार की अपेक्षा कट्टरता
है। किसी भी समूह या समुदाय के प्रति मजबूत झुकाव भी कट्टरता है। और बात-बात में अपनी
बात मनवाने की जिद्द भी कट्टरता है। वहीं जो एकबार तय कर लिया फिर जिद्दपूर्वक उसी
हिसाब से चलना भी कट्टरता ही है। वैसे ही कोई अच्छी बात समझ में आने के बाद भी किसी
पुरानी बात पर अड़े रहना भी कट्टरता है। कुल-मिलाकर कहूं तो हर प्रकार की जिद्द सिवाय
कट्टरता के और कुछ नहीं है। और यह ध्यान रख लेना कि जो जितना जिद्दी है, उतना ही अकडू
होता है। और यह सर्वविदित है कि हर अकड़ अंत में दुःख और क्रोध को ही न्योता देती है।
इसीलिए गौर करना, जरा-सा किसी के धर्म के खिलाफ बोलो कि धार्मिक कट्टरता का मनुष्य
तुरंत क्रोधित हो मैदान में उतर आता है। यदि आपको भी अपनी पसंद या मान्यता की बात के
विरुद्ध बात सुनते ही क्रोध आता है, तो सावधान हो जाओ। यह कट्टर मानसिकता की शुरुआत
है। इसे पनपने ही मत दो वरना एक दिन यह कट्टर मानसिकता आपका सुख-चैन सब तबाह कर देगी।
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दीप त्रिवेदी
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