एक दिन एक बड़े तालाब में कुछ मगरमच्छ विचार करने हेतु एकत्रित हुए। वे अपने आलसी स्वभाव व सोने की आदत के कारण परेशान थे। उन्हें यह गंवारा नहीं हो रहा था कि किनारे पर खड़ा छोटे-से-छोटा जानवर उनके सोते रहने के स्वभाव के कारण उन्हें आलसी कहकर टोंट मार जाता है। लेकिन जो थे वो थे। उस बात में ऐब देखना ही हर प्रकार के दुःख की शुरुआत है। और इस समय एकत्रित हुए मगरमच्छ यही कर रहे थे। तभी स्कूल से लौट रहा एक छोटा मगरमच्छ हाथ में ‘इन्सान’ नाम की एक किताब लिए वहां से निकला। सबको चर्चा करते देख वह वहीं रुक गया। कुछ देर उसने चर्चाएं सुनी भी।
लेकिन आखिर उसे यह बात बड़ी बेतुकी जान पड़ी। सो, उसने कुछ कहने की इजाजत मांगी। और इजाजत मिलते ही वह बड़े आत्मविश्वास से बोला- मुझे स्कूल में आज ही इन्सानों के बाबत बताया गया है। उस आधार पर मैं यह दावे से कह सकता हूँ कि सबसे ज्यादा सोने वाला जानवर इन्सान ही है। इस किताब में भी लिखा है कि इन्सान सिर्फ रात के आठ घंटे नहीं सोता है, बल्कि अन्य सोलह घंटे भी वह खुली आंख से सोया ही रहता है। उसका सारा काम-काज, सोच-विचार मशीनी ही होता है। वह कब किताब उठाता, कब खाना खाता, कब कौन-सा विचार पकड़ता या उसे कब, क्यों और कितना क्रोध आता है...उसे कुछ पता नहीं होता। और-तो-और, कभी कोई सोने की आदत छोड़ चुके बुद्ध या क्राइस्ट उन्हें जगाने की कोशिश करते हैं तो वह उन्हें भी भगवान बनाकर सुला देता है। फिर वे पत्थरों की मूर्तिंयां बने यहां-वहां सजाने के काम आते हैं। अतः हम सबसे ज्यादा आलसी नहीं है। हां, हमारी नींद थोड़ी ज्यादा है परंतु हम कभी खुली आंख नहीं सोते हैं। सो इन्सान के होते-सोते हमें अपनी नींद के बाबत गिल्ट पालने की कोई आवश्यकता नहीं।
- दीप त्रिवेदी
No comments:
Post a Comment