ध्यान
रहे, सत्य वह नहीं है जो आप कर रहे हैं, सत्य वो है जो करते वक्त आपके भीतर छिपा पड़ा
है। देखने में तो आप किसी की सहायता कर रहे हैं, परंतु मन से उसकी बर्बादी का इंतजार
कर रहे हैं। ...और यही सत्य है। ठीक वैसे ही सत्य वह नहीं है जो आप प्रकट कर चुके हैं,
बल्कि सत्य वह है जो आपने किसी कारणवश प्रकट नहीं किया है। कल उठकर यह अप्रकट ही प्रकट
होने वाला है। वह अप्रकट ही आपको सताने वाला है।
सवाल
यह कि जो आपके भीतर है वह बाहर निकालते क्यों नहीं? बस इस सवाल का जवाब खोज लोगे तो
अपने को अच्छे से पहचान लोगे। और जो अपने को पहचान लेगा वह अपने में सुधार भी लाएगा।
सोचो, ऐसे सुधरे मनुष्य को भीतर छिपाना क्या है? और जो है वह बाहर प्रकट कर देना ही
मनुष्य-जीवन का सत्य है। अपने भीतर को दबाने या छिपाने वाली शिक्षाएं ही गलत है। तथा
यह उसी का परिणाम है जो मनुष्य इस कदर विकृत हो चुका है।
...परंतु
आप इस विकृति से बचें। भीतर इतना विश्वासपूर्वक सुधार ला दें कि भीतर का बाहर प्रकट
हो ही जाए, देखना इस एक परिवर्तन से आपका जीवन कहां-से-कहां पहुंच जाएगा।
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दीप त्रिवेदी
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