आपने हवाईजहाज को उड़ते देखा ही होगा। ...वे उड़ते
कैसे हैं? जब उन्हें इतनी शक्ति प्रदान की जाती है कि वे पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण को
मात दे सकें। बस वैसा ही कुछ मनुष्य जीवन का भी है। वहां उड़ता मनुष्य का मन है, लेकिन
वह उड़ तब पाता है जब उसे इतनी शक्ति प्रदान की जाए कि वह संसार के तमाम गुरुत्वाकर्षणों
से ऊपर उठ सके। हवाईजहाज को तो सिर्फ पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण से जूझना होता है, परंतु
मन को तो धर्म से लेकर समाज तक के व रिश्तों से लेकर अपनी तुच्छ इच्छाओं तक के तमाम
गुरुत्वाकर्षण से उलझना पड़ता है। और जब तक वह उनसे बचकर निकलना सीख नहीं पाता तब तक
वह उड़ नहीं सकता। और साथ ही यह भी समझ ही लो कि जो उड़ता नहीं वह जीता भी नहीं।
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दीप त्रिवेदी
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