जब मुझे सूली पर लटकाया गया तब मेरे अंतिम शब्द थे, इन्हें
माफ करो! यह नहीं जानते कि ये लोग क्या कर रहे हैं। निश्चित ही उस समय ये शब्द मैंने
यहूदियों से कहे थे। पर आज मैं अधिकांश क्रिश्चियन के लिए भी यही शब्द दोहरा रहा हूँ
कि हे प्रभु इन्हें माफ करो! इन्हें खुद अंदाजा नहीं कि मेरे नाम पर ये लोग क्या-क्या
कर रहे हैं। यदि अंदाजा होता तो प्रेम का साम्राज्य न होता क्रिश्चियनिटी पर? यदि
मेरा कुछ भी एहसास होता इन लोगों को तो मनुष्य, मनुष्य का सबसे बड़ा मित्र बनकर न उभरा
होता? यदि मुझे ठीक से समझा होता तो सबके जीवन से दुःख व चिंताएं गायब न हो गई होतीं?
होगा! परंतु आप लोगों से कह देता हूँ कि अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा है। मेरी कही बातें
और मेरा जीया जीवन आपके सामने है। मैं तो यही कहूंगा कि उनका फायदा उठाओ। ...मेरी दृष्टि
में वही सही क्रिसमस मनाना होगा।
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दीप त्रिवेदी
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