आपकी दुनिया में मेरे इतने चर्चे देख
मुझे 2000 वर्ष बाद फिर धरती पर आने की इच्छा हुई। मेरी इस इच्छा में भी करुणा ही छिपी
हुई थी। विचार यही था कि जब चारों ओर मेरे चर्चों और मेरी मूर्तियों की इतनी धूम है,
जब मनुष्य मुझे इस कदर याद कर रहा है तो क्यों न मैं सब के सामने एकबार फिर साक्षात्
प्रकट हो ही जाऊं? 2000 वर्ष पहले की परिस्थिति अलग थी। तब मेरी बातें किसी को पसंद
नहीं आई थी और मुझे सूली पर लटका दिया गया था। परंतु आज तो पूरी पृथ्वी मेरे चाहने
वालों से भरी पड़ी है। मेरी साक्षात् करुणा पाकर आज तो पूरी पृथ्वी चमन हो जाएगी।
बस विचार शुभ था, तुरंत अमल में लाना
तय कर लिया। मौका भी क्रिसमस का ही चुना ताकि और रंग जम जाए। फिर क्या था, मैंने हाथोंहाथ
कुछ पादरियों की सभा बुलवाकर उन्हें अपना निर्णय सुनाया। सोचा, वे खुशी से झूम उठेंगे।
परंतु आश्चर्य घट गया। मेरी बात सुनते ही सभी पादरी एक गहरी सोच में डूब गए। मैं चकित
रह गया। यह क्या, मुझे याद कर-कर के दिन-रात चर्चों में घंटियां बजाते रहते हैं, और
मेरे साक्षात् आने पर विचार कर रहे हैं?
मैंने सोचा, हो सकता है मेरे स्वागत की
तैयारियों को लेकर गंभीर हो गए होंगे। बात तो सही ही है। उनका सबसे चहेता क्राइस्ट
स्वयं साक्षात् रूप से फिर प्रकट होने वाला है। परंतु मुझे स्वागत या धूमधाम की क्या
फिक्र? मैं तो ठहरा सीधा-साधा आदमी। सो मैंने तुरंत कहा- इतना सब सोचने की जरूरत नहीं,
मैं तो सीधा तुम लोगों के साथ ऐसे ही चले चलता हूँ।
मेरे यह कहने के बावजूद पादरियों की गंभीरता
कम नहीं हुई। शायद मेरा पृथ्वी पर आने का दृढ़ इरादा देखकर कुछ घबरा भी गए। यही नहीं,
उनमें से एक तुरंत बोला भी कि पहले हम इस विषय पर आपस में चर्चा कर लेते हैं, फिर आपको
बताते हैं।
ठीक है भाई। मैंने सबको एकान्त बख्श दिया।
अब उन्होंने आपस में क्या चर्चा की यह तो नहीं मालूम परंतु चर्चा का सार यह निकाला
कि मेरा पृथ्वी पे वापस आना ठीक नहीं। लो, यह क्या बात हुई? मेरे पूछने पर उलटा एक
पादरी मुझसे ही सवाल कर बैठा- चलो, यह बताइए कि आप धरती पर आकर करेंगे क्या?
मैं सवाल सुनते ही चौंक गया। करूंगा क्या
मतलब? मैं कोई दस-बीस काम थोड़े ही जानता हूँ। मैं तो अपने ज्ञान और प्रेम की चर्चा
छेड़ भगवान के निकट आने का मार्ग बताता फिरूंगा।
मेरा इरादा सुनते ही एक वरिष्ठ पादरी
बड़ी विनम्रतापूर्वक बोला- बस यही कारण है कि हमें आपका धरती पर फिर आना उचित नहीं लग
रहा है। क्योंकि आप अपनी बातों से बाज नहीं आएंगे। पहले आपने यहूदियों की दुकानें बंद
करवाई थी, अबकी हमारी बंद करवाएंगे।
मुझे तो बात ही समझ में नहीं आई। भला
मैं ऐसा क्यों करूंगा? तुम लोग मुझे इतना मानते हो। दिन-रात मेरी बातें दोहराते रहते
हो। मैं तुम्हारी खिलाफत क्यों करूंगा?
अबकी मेरा नादान सवाल सुनकर उत्तर देने
एक और वरिष्ठ पादरी मैदान में कूद पड़ा। वह बोला- हम पूजते भी आपको ही हैं और बात भी
आप ही की करते हैं, परंतु कार्य वही करते हैं जो यहूदियों के समय किया करते थे। हमने
सामने की तस्वीर बदली है, बाइबल बदली है, इमारतें बदली हैं परंतु इरादे नहीं बदले हैं।
हमने सिर्फ हमारी पहचान बदली है। वरना तो उस समय भी हम लोगों पर शासन करने की चाह में
धर्मों की दुकानें चलाया करते थे, और आज भी यही कर रहे हैं।
इतना सुनते ही मैं चिंतत हो उठा। मैंने
कहा- मैंने तो शिक्षा लोगों को बांटने की दी थी, फिर तुम लोग यह धर्म के नाम पर लोगों
का शोषण क्यों करने लग गए? लोगों के धनों से बड़े-बड़े चर्चों पर कब्जा क्यों करने लग
गए? नहीं यह नहीं चलेगा। मैं आऊंगा और एकबार फिर सब ठीक कर दूंगा।
यह सुनते ही एक पादरी हंसते हुए बोला-
ऐसा कुछ नहीं होने वाला। आप तो कुछ वर्ष रुककर चले जाएंगे। हमलोग फिर एक नया चेहरा
लेकर नया धर्म अपनाकर फिर अपनी दुकानें खोल लेंगे। लाखों वर्षों से यही होता आ रहा
है और आगे भी यही होता रहेगा। अतः हम चाहते हैं कि ना तो आप बार-बार आने का कष्ट उठाएं
और ना ही हमें बार-बार नई दुकानें खोलने की जहमत में डालें।
चलो, पादरियों की मंशा तो जान ली। परंतु
आप लोगों का तो कोई स्वार्थ नहीं। आप लोग तो मेरे सच्चे भक्त हैं। देखता हूँ आप लोग
मुझे कब बुलाते हो। मैं वादा करता हूँ कि सच्चे हृदय से एकान्त में बुलाओगे तो मैं
तत्क्षण आकर आपके हृदय में बस जाऊंगा।
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दीप त्रिवेदी
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