प्रकृति- अरे सावन! तू उदास क्यों है?
सावन- क्या कहूं! आपने तो कहा था कि मैं हमेशा सबसे हसीन मौसम रहूंगा। मुझे हमेशा चारों ओर हंसते-गाते, खाते-पीते, नाचते, उत्सव मनाते और प्रेम करते ही लोग नजर आएंगे। लेकिन वर्षों से सब उलटा हो रहा है। मुझे तो चारों ओर मनहूसियत फैलाते और उपवास करते लोग ही नजर आते हैं।
प्रकृति निराश होते हुए बोले- क्या करूं। लाखों वर्षों से सब ठीक चल रहा था। पता नहीं दो-तीन हजार वर्षों से ये रोजे और उपवास कहां से आ गए? लेकिन कोई कुछ भी कहे, मैंने तो हर मनुष्य को अपने जीने पुरती निर्णय करने की अकल दी ही हुई है। समझ नहीं आता कि वह उतनी भी इस्तेमाल क्यों नहीं कर रहा?
...पर तू उदास मत हो। देख मेरे विरुद्ध कोई ज्यादा दिन नहीं जा सकता। खाने-पीने के हसीन मौसम में न खाने से लोगों की खुराक तेजी से कम हो ही रही है। और इसी कारण उसे दस तरह की बीमारियां भी पकड़ रही है। कब तक सहेगा, जल्द ही लाइन पे आ जाएगा।
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