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भगवद्गीता - कृष्ण! आप अपने जीवन का सबसे हसीन कार्य किसे मानते हैं?
कृष्ण - तुम जानती हो, फिर भी लाड़ रही हो।
...निश्चित ही मेरे मुख से तुम्हारा बह निकलना।
भगवद्गीता - तो फिर यह बताओ महाराज कि आपके माखन चुराने की
आपकी रासलीलाओं की, आपके जन्म की, आपके कंस-वध की
आपके रण छोड़ने की, आपकी द्वारका के भव्यता की तो इतनी चर्चा है
...परंतु विश्व में 100 करोड़ के करीब हिंदू होने के बाद भी
मेरी कोई खास चर्चा नहीं।
बहुत होता है तो संस्कृत में दो-चार श्लोक गुनगुना लेते हैं
जिस भाषा की उनको जानकारी नहीं।
अक्सर यह सब देखकर मेरा दिल रो-रो पड़ता है।
कृष्ण - तो तू क्यों उदास होती है।
कोई तेरा सिक्का माने या नहीं, मेरे तो सबसे अजीज तू ही है।
और फिर तुझे पूरी तरह से तो लोगों ने नकारा भी नहीं है।
मेरे मुख से गीता समझाते वक्त ‘जुआ’ शब्द क्या निकला
तुझे याद करने के बहाने सब जुआ तो खेल ही लेते हैं
गलत ही सही, पर तू उसी से संतोष मान।
रहा सवाल लोगों का तो उस बाबत तू इतना तय जान कि
तुझे समझे बगैर किसी का उद्धार नहीं।
...और तू ही देख ले! तुझे हजारों में कोई एक समझता है
और वही एक सुखी व सफल है।
भगवद्गीता - कृष्ण! आप अपने जीवन का सबसे हसीन कार्य किसे मानते हैं?
कृष्ण - तुम जानती हो, फिर भी लाड़ रही हो।
...निश्चित ही मेरे मुख से तुम्हारा बह निकलना।
भगवद्गीता - तो फिर यह बताओ महाराज कि आपके माखन चुराने की
आपकी रासलीलाओं की, आपके जन्म की, आपके कंस-वध की
आपके रण छोड़ने की, आपकी द्वारका के भव्यता की तो इतनी चर्चा है
...परंतु विश्व में 100 करोड़ के करीब हिंदू होने के बाद भी
मेरी कोई खास चर्चा नहीं।
बहुत होता है तो संस्कृत में दो-चार श्लोक गुनगुना लेते हैं
जिस भाषा की उनको जानकारी नहीं।
अक्सर यह सब देखकर मेरा दिल रो-रो पड़ता है।
कृष्ण - तो तू क्यों उदास होती है।
कोई तेरा सिक्का माने या नहीं, मेरे तो सबसे अजीज तू ही है।
और फिर तुझे पूरी तरह से तो लोगों ने नकारा भी नहीं है।
मेरे मुख से गीता समझाते वक्त ‘जुआ’ शब्द क्या निकला
तुझे याद करने के बहाने सब जुआ तो खेल ही लेते हैं
गलत ही सही, पर तू उसी से संतोष मान।
रहा सवाल लोगों का तो उस बाबत तू इतना तय जान कि
तुझे समझे बगैर किसी का उद्धार नहीं।
...और तू ही देख ले! तुझे हजारों में कोई एक समझता है
और वही एक सुखी व सफल है।
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