Wednesday, August 21, 2013

श्री दाभोलकर की दुःखद हत्या : एक चिंता - एक चेतावनी


कल पुणे में श्री नरेंद्र दाभोलकर की हत्या कर दी गई। समाज-सुधार और खासकर धार्मिक अंधविश्वासों के विरुद्ध लोगों को जगाने हेतु किए गए उनके प्रयास कभी नहीं भुलाए जा सकते हैं। मैं उनके इन प्रयासों हेतु उन्हें सलाम करता हूँ। 

अपना जीवन दूसरों को समर्पित करने वाले श्री दाभोलकर की हत्या चिंता का एक गहन विषय भी है। इस एक हत्या से पूरे देश को जागने की जरूरत है। क्योंकि यह समाज में पनप रही कट्टरता की ओर एक सीधा इशारा है। और हमें नहीं भूलना चाहिए कि हर प्रकार की कट्टरता अंत में पाकिस्तान - अफगानिस्तान-से हालात पैदा करने की तरफ ले जाती है। भूलना तो हमें यह भी नहीं चाहिए कि हिंदू धर्म व संस्कृति में कट्टरता को कहीं कोई स्थान नहीं। भारत में बुद्ध जैसे कई महापुरुष हुए जिन्होंने हिंदू विधि-विधानों का खुलकर विरोध किया। परंतु देश ने उन्हें भगवान का दर्जा दिया। दयानंद सरस्वती जैसे महान व्यक्ति हुए जिन्होंने हर प्रकार की मूर्तिपूजा का जमकर विरोध किया। कइयों को यह बात रास नहीं भी आई। फिर भी देखो, आज उनका स्थापित किया आर्यसमाज देश के कोने-कोने में फैला हुआ है। यहां कबीर जैसे लोग भी हुए जिन्होंने बनारस की गलियों में बैठकर हिंदू-मुस्लिम दोनों के पाखंडों पर जमकर हमला किया। और आज देखो, उनसे ज्यादा पॉप्युलर भारत में कोई नहीं। और भी ऐसे कई लोग हुए हैं जिन्होंने अनेकों सामाजिक और धार्मिक कुरीतियों का विरोध किया। लेकिन हिंदुओं ने कभी किसी को नहीं मारा। उलटा हर नई सोच का सम्मान ही किया। भारतीय संस्कृति हमेशा से आलोचनाओं का स्वागत करना और आलोचनाओं से सीखना सिखाती रही है। यहां कभी किसी सोक्रेटिज को नहीं मारा गया। कभी किसी क्राइस्ट को सूली पर नहीं लटकाया गया। कभी किसी मन्सूर का गला नहीं काटा गया। क्योंकि यह हिंदू संस्कृति नहीं...। 

लेकिन पिछले पच्चीस-तीस वर्षों से धर्म के नाम पर कट्टरता सर उठाने की कोशिश कर रही है। लेकिन इससे सभी देशवासियों को सावधान हो जाने की जरूरत है। हिंदू धर्म और संस्कृति के नाम पर पनप रही इस कट्टरता को समय रहते नहीं दबाया गया तो हिंदू-धर्म की सबसे बड़ी गरिमा ‘‘सहिष्णुता’’ के ही खतरे में पड़ जाने का डर है। यदि आपने इस दुःखद हत्या को हल्के से लिया तो मेरी यह चेतावनी ध्यान रख लेना कि कल इसका बहुत बड़ा अन्जाम देश को भुगतना पड़ेगा।

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