एक दिन कुछ बकरियां चर्चा करने एकत्रित हुई। चर्चा का विषय स्पष्ट था कि आखिर वे इतनी सहमी-सहमी व डरी-डरी सी क्यों रहती है? अब चर्चा तो काफी चली परंतु कुछ पक्का निष्कर्ष नहीं निकल पाया। तभी उनमें से एक पालतू बकरी बोली- क्योंकि मैं इन्सानों के बीच रहती हूँ, अतः मुझे इस बात का कुछ-कुछ अंदाजा हो रहा है। सच कहूं तो हमारी शक्ल व हालत पतियों से मिलती-जुलती है। अपनी पत्नी के सामने वे भी ऐसे ही डरे-डरे व सहमे-सहमे घूमते रहते हैं। हो सकता है वे ही हमारे पूर्वज हों।
...बात सबको जम गई। हालांकि अब बात जमने से उनको फर्क क्या पड़ना था। वे तो बकरी का स्वरूप धारण कर ही चुके थे। सावधान तो उन लोगों को होना है जो पति बनने को उतावले हुए जा रहे हैं।
- दीप त्रिवेदी
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