- ए भाई स्वास्थ्य! तुम रूठ
के चले कहां गए? आजकल तो बात-बात पे छोटी-मोटी बीमारी पकड़ रही है, इम्यूनिटी तो पूरी
तरह खत्म हो गई है।
- तो वह तो होगी ही। तुम काम ही ऐसे कर रहे हो, डाइटिंग का भूत जो
सवार है तुम पर। अब जब खाओगे नहीं तो कीटाणुओं से लड़ने की ताकत आएगी कहां से? कोई-न-कोई
कीटाणु हावी होकर एक या दूसरी बीमारी पकड़ा ही देंगे। और फिर अपने भोजन की अनियमितता
का क्या कहना? कभी उपवास तो कभी सीधे खाने पर टूट ही पड़ना। अब भूखे रहना तो हर हाल
में खतरनाक है फिर भी रोजे और उपवास के नाम पर कूद पड़ते हो। अब बिना पेट्रोल के गाड़ी
चलाने की कोशिश करोगे तो इंजिन तो खराब होगा ही।
- चलो
यह तो समझ गया लेकिन जब नियमित भोजन करूंगा तब तो बात-बात पर अस्वस्थता नहीं पकड़ेगी?
- उससे काफी कुछ बेहतर हो जाएगा परंतु बात पूरी तरह नहीं बनेगी।
- क्यों...?
- क्योंकि अस्वस्थता शरीर के साथ-साथ मन का भी विषय है, और यह मन
बड़ा ही उपद्रवी है। जो मानते हो और जो पढ़ते हो, वही वो प्रकट कर देता है। और तुम आजकल
कर क्या रहे हो...? क्या खाने से क्या होता है, पढ़े जा रहे हो किस वस्तु में कितनी
कैलरी है, इसका पता लगाने में लगे रहते हो।
- तो इसमें बुराई क्या है?
- बुराई
यह कि आपका वह ज्ञान सही हो या गलत, परंतु मन के नियम से तो आपके लिए वह आपके मानते
ही सही हो जाता है। फिर आपने जरा-सी कोई कैलरी वाली चीज खाई नहीं कि वजन बढ़ा नहीं और
जरा-सा कुछ अपनी मान्यता के खिलाफ खाया नहीं कि बीमारी पकड़ी नहीं। विश्वास नहीं होता
तो खुद ही देख लो तुम ज्ञानी बिसलेरी पीकर और घर का खाकर भी बीमार रहते हो और अज्ञानी
मजदूर कहीं का भी और कैसा भी पानी पीकर या खाकर स्वस्थ रहता है। अतः ध्यान रख लेना
कि मन के तल पर अज्ञानी सुखी।
- चलो, खान-पान की व्यर्थ जानकारियों से बचेंगे, डर-डर के नहीं खाएंगे,
फिर तो बात-बात पर अस्वस्थता नहीं पकड़ेगी?
- बिल्कुल नहीं यदि फिर तुम बीमारियों के संबंध में जानकारियां जुटाने
में न लग जाओ तो। वरना कौन-सी बीमारी कब, कैसे और कहां से होती है, पढ़ना शुरू करोगे
तो फिर बात वहीं-की-वहीं आ जाएगी क्योंकि फिर ‘मन’ अपने उपद्रवी स्वभाव से तुम्हें
फंसा ही लेगा। तुम्हारी जानी चीजें सच हो या नहीं, परंतु तुम्हारी मान्यता के कारण
मन तुम्हें उस चीज से प्रभावित अवश्य करेगा। आज के बाद ध्यान रखना कि जिस व्यक्ति को
जिस बीमारी की जितनी जानकारी, उसे वह बीमारी पकड़ने की संभावना उतनी ही ज्यादा। ...दूसरी
ओर अशिक्षित मजदूर जिसे इन सब बातों के लिए फुर्सत ही नहीं, वह हमेशा सेफ।
- तो क्या सावधानी भी बुरी है?
- अब बुद्धि के लिए तो नहीं, परंतु मन के लिए अवश्य है। मन ने जाना
नहीं कि प्रकट किया नहीं। वरना रूटीन में बीमारियां आने दो और डॉक्टर को एनालिसिस करने
दो, फिर वह कहे वैसा करो- ज्यादा सुखी रहोगे। फिर बस बच जाएगी हेरीडेटरी बीमारियां
या फिर अप्रत्याशित बीमारियां...अब जब जीवन है, तो इतना तो लगा ही रहेगा।
-
दीप त्रिवेदी
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