Saturday, March 29, 2014

जीवन में कोई-न-कोई चार्म हमेशा बनाए रखना


 ‘चार्म’ अपनेआप में बड़ी खूबसूरत चीज है। फिर वह चार्म नए साथी बनाने का हो या फिर वह किसी व्यक्ति या कला की दीवानगी हो, फिर वह चार्म खाने-पीने या बन-ठन के घूमने का हो या स्वस्थ-सुंदर व फिट रहने का हो...कोई फर्क नहीं पड़ता है।

      क्योंकि चार्म की अनेक निराली खूबियां हैं। एक तो जब भी मनुष्य किसी चार्म में डूबा होता है, भीतर एक मस्ती की तरंग चलती ही रहती है। और भीतर जब मस्ती की तरंग हो तो जीने का मजा ही और हो जाता है। दूसरा जब आप चार्म में डूबे होते हो तब आप बड़े-से-बड़े सदमे से जल्दी बाहर आ जाते हो। मन फिर उसी चार्म में लगाने से तुरंत बहल जाता है। और यह गुण मनुष्य के मन की बहुत बड़ी उपलब्धि है। और तीसरा यह कि चार्म में डूबा व्यक्ति व्यर्थ ना तो किसी के मामले में इंटरफियर करता है और ना ही वह किसी के किसी व्यवहार से ज्यादा प्रभावित होता है। इसलिए सुखपूर्वक जीने हेतु यह गुण अति-आवश्यक है; और मजा यह कि चार्म ओढ़े घूम रहा व्यक्ति इस गुण को बड़ी आसानी से प्राप्त कर लेता है।

      अतः जीवन में एक-न-एक चार्म अवश्य बनाए रखो। एक से मन न भरे या रास न आए तो तुरंत दूसरा चार्म ओढ़ लो। परंतु किसी एक चार्म पर अपने को केन्द्रित किए बगैर जीओ ही मत। देखना इस एक आदत से आप कभी न थकेंगे, न हारेंगे, न मरेंगे, न सर पटकेंगे। आपके चार्म की धुन राह में पड़ने वाली विपरीत परिस्थितियों को भी हवा में उड़ा देगी।

      - दीप त्रिवेदी 

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