मैं
तो पैदा ही मरने के लिए हो रहा था। क्योंकि मेरे पूर्व में जन्में सात भाई-बहनों को
मेरा मामा कंस पहले ही मार चुका था। और मुझे मारने हेतु वह मेरे जन्म लेने का इंतजार
कर रहा था। और मैं पैदा हुआ भी तो अमावस की काली रात को। फिर किसी तरह बचा लिया गया,
तब भी मौत के साये ने मेरा पीछा नहीं छोड़ा। कभी मामा ने मुझे मारने हेतु पूतना और केशी
भेजे तो कभी मैं स्वयं कालिया और अरिष्ठ से भिड़ गया। कभी जान बचाने हेतु रण छोड़कर भागा
तो कभी अपनी चालबाज रणनीतियों से जान बचाता रहा।
और क्या
कहूं आपसे, मौत रूपी अमावस ने तो मेरा पीछा मरते दम तक नहीं छोड़ा। लेकिन कमाल यह कि
बावजूद इसके जीवनभर मेरा कोई बाल बांका नहीं कर पाया। क्योंकि मैंने स्वयं को कान्हा
से ‘‘जय श्री कृष्ण’’ के स्तर तक उठाया।
बस मुझसे
जीवन में आई अमावसों को पूनम में बदलने की यह कला और क्षमता सीखने लायक है। लेकिन आपने
वे तो सीखी नहीं और जो मिले उसे जय श्री कृष्ण कहने लग गए। अरे भाई, मेरी तो जय मेरे
कर्मों से मैंने कर ही ली है, वह आपके दोहराने से बढ़ने-घटने वाली नहीं। फिर मेरी जय
बुलाने से आपको क्या फायदा? कोई इससे आपकी जय थोड़े ही हो जाने वाली है? आपकी जय तो
मैंने अपने जीवन में आई अमावसों को कैसे पूनम में बदला, यह सीखने से ही हो सकती है।
सो, मेरा जीवन पढ़ो व मुझसे सीखो। ...बाकी तो बिना कारण जय श्री कृष्ण कहते रहने वालों
का मैंने क्या हाल कर दिया है, वह भी देख लो।
- दीप त्रिवेदी
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