दुनिया में प्रतिभा की कहीं कोई कमी नजर नहीं
आती, फिर चारों ओर इतनी असफलता क्यों है? क्योंकि मनुष्य ने चाह और राह दोनों उलटी
पकड़ी हुई है। हरकोई अपनी प्रतिभा पाने और प्रतिभा के बल पर जमाने को जीतने में लगा
हुआ है। लेकिन अपने को जीते बगैर जमाने को जीता ही कैसे जा सकता है?
मानो
आप कोई बड़ा कार्य करने जा रहे हैं, आपमें वह कार्य निपटाने की प्रतिभा भी है परंतु
वह कार्य करने में आपका मूड नहीं लग रहा है। या उस कार्य में आप चाहकर भी अपना ध्यान
नहीं लगा पा रहे हैं। तो क्या वह कार्य आप अच्छे से कर पाएंगे? ...नहीं, क्योंकि किसी
भी कार्य को श्रेष्ठ तरीके से निपटाने हेतु प्रतिभा के साथ-साथ उस कार्य को करने का
मूड और कार्य करते वक्त उसमें ध्यान लगा होना दोनों अति आवश्यक है। लेकिन दुर्भाग्य
से आपकी वर्तमान मनोदशा के कारण आज दोनों में से एक भी आपके नियंत्रण में नहीं। बस
यहीं आकर स्वयं को जीतना आपकी प्राथमिक आवश्यकता हो जाती है ताकि आपका मूड व ध्यान
आपके नियंत्रण में आ जाए। और स्वयं को जीतने के कोई क्लास उपलब्ध नहीं हैं। उस हेतु
तो अच्छी सायकोलोजी पढ़कर आपको स्वयं अपने भीतर प्रयास करने होते हैं।
- दीप त्रिवेदी
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