25 अक्टूबर 1881 को स्पेन के एक मध्यमवर्गीय
परिवार में पिकासो का जन्म हुआ था। उनके पिता होज्ये एक पेंटर थे। यानी पेंटिंग का
माहौल घर पर जमा ही हुआ था। इधर पिकासो जब बोलना सीखे तो उन्होंने पहला शब्द पिज-पिज
यानी स्पेनिश भाषा में पेन्सिल ही बोला। बस पिता ने इसे अपने लाड़ले पुत्र के कला-प्रेम
के तौर पर लिया और अपने पुत्र को एक अच्छा कलाकार बनने हेतु हर संभव वातावरण प्रदान
करना तय किया। और अपने इसी निर्णय के तहत वे एक दिन अपने तीन वर्षीय पुत्र को सांढ़ों
की कलात्मक ल़़ड़ाई दिखाने ले गए। नन्हें पिकासो को सांढ़ों की इस भिड़ंत में आनंद आ गया।
और आठ वर्ष के होते-होते उन्होंने पेन्सिल रगड़-रगड़कर सांढ़ों की ल़़ड़ाई के उस दृश्य
का चित्र ही बना डाला। चित्र इतना जीवंत था कि पिता प्रभावित हुए बगैर नहीं रह सके।
और दस वर्ष के होते-होते तो पिता ने पिकासो के हाथ में ब्रश व रंग भी पकड़ा दिया।
...फिर पिकासो ने क्या इतिहास रचा, यह किसी से छिपा नहीं है।
लेकिन
उनके महान बनने की नींव उनके पिता ने ही रखी। उनके अपने बच्चे की रुचि पहचानने, उसका
उत्साह बढ़ाने और उसकी कला को निखारने हेतु वातावरण प्रदान करने के निर्णय ने ही नन्हें
पिकासो को महान पिकासो बना दिया। पिकासो के महान बनने की यह दास्तान विश्व के हर पिता
को बहुत कुछ सिखाती है। वे अपना बच्चा पिकासो बने यह आशा तो रखते हैं, परंतु कैसे...यह
सोचने की जहमत नहीं उठाते हैं। उम्मीद है यह दास्तान सुनकर हर पिता अपने बच्चों में
छिपी कला को पहचानेगा और उनकी कला को निखारने हेतु उन्हें योग्य वातावरण भी प्रदान
करेगा। यदि चन्द पिता भी यह सीख जाते हैं तो मेरा यह पोस्ट लिखना सफल हुआ।
- दीप त्रिवेदी
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