22 अक्टूबर 1879 को महान वैज्ञानिक एडीसन ने
बल्ब खोजा था। ...यानी करीब 135 वर्ष पूर्व। कोई वस्तु स्थायी रूप से रोशन भी हो सकती
है, इस सोच-मात्र के लिए एडीसन को सलाम करने को जी चाहता है। और उससे ज्यादा सलाम उनके
बल्ब बनाने के डिटरमिनेशन को करना चाहता हूँ। उन्हें एकबार बल्ब बनाने का खयाल आया
तो बस अपनी पूरी टीम के साथ लेबोरेटरी में घुस गए। और आप मानेंगे नहीं कि बल्ब रोशन
करने हेतु जिस फिलामेंट की उन्हें तलाश थी वह कार्बन फिलामेंट, उन्हें करीब 6000 से
ज्यादा भिन्न-भिन्न फिलामेंट के असफल होने के बाद ही हाथ लगा। और वह भी करीब सत्ताइस
दिनों तक लगातार दिन-रात लेबोरेटरी में भिड़े रहने के बाद...। इस दरम्यान न उनका उत्साह
चुका, ना ही उनका आत्मविश्वास डगमगाया। और आखिर सत्ताइस दिनों तक करी गई उनकी इस ध्यानपूर्ण
तपश्चर्या ने बल्ब रोशन कर ही दिया।
आज
बिना रोशनी के जीवन की कोई कल्पना नहीं कर सकता है। शायद मनुष्य के लिए रात को भी रोशनी
उपलब्ध हो, उससे बड़ा कोई वरदान नहीं हो सकता है। तो आज मैं पूरे विश्व की ओर से ऐसे
महान एडीसन को सलाम करता हॅूं तथा आपको भी कहता हूँ कि महान लोगों के महान कार्यों
को सलाम करने की आदत डालें। जब मौका मिले उनके प्रति कृतज्ञता से भरें। बुद्ध, क्राइस्ट
व कृष्ण के जन्मदिवस मनाएं, उनके हमारे ऊपर बहुत उपकार हैं, परंतु दूसरे क्षेत्रों
के महान लोगों को भी याद करें। मैं वादा करता हूँ कि इससे बुद्ध, कृष्ण या क्राइस्ट
बुरा नहीं मानेंगे, बल्कि प्रसन्न ही होंगे।
और
सायकोलोजिकली भी ज्यादा-से-ज्यादा महान लोगों के प्रति आप कृतज्ञता से भरने की आदत
डालें, यह आदत एक तो आपके अहंकार को कमजोर करेगी, दूसरा आपको महान बनने की प्रेरणा
देगी तथा तीसरा आप जिसे भी दिल से मानेंगे, उसके गुण भी धीरे-धीरे आपमें अवतरित होना
शुरू हो जाएंगे। ...तो फिर कृतज्ञता के दायरे को सीमित रख के क्यों जीना? इस दायरे
को बुद्ध, कृष्ण व क्राइस्ट तक ही क्यों बांधना? बस इस सूची को बढ़ाते जाओ और अपने को
महान बनाने की नींव मजबूत करते जाओ।
- दीप त्रिवेदी
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