Sunday, November 23, 2014

थोड़ा अपने भीतर झांको और पता लगाओ कि आपके कितने मन हैं?


मनुष्य का मन बड़ा ही उपद्रवी व गहरा है। प्याज के छिलके की तरह इसकी परतें हैं। साधारणतः मनुष्य अपने को कोन्शियस माइंड से जानता-समझता है। परंतु वह मन की बड़ी ऊपरी सतह है। मनुष्य की वास्तविकता तो उसके सब-कोन्शियस तथा अन-कोन्शियस माइंड में छिपी होती है, जिसका उसे कुछ अता-पता नहीं होता है। यही कारण है कि आप जिसका अच्छा करते हैं, उसे फिर मौके-बेमौके सुनाने को, या उससे कुछ अन्य अपेक्षा करने को मजबूर हो जाते हैं। कुछ नहीं तो धन्यवाद या इज्जत की अपेक्षा तो आप कर ही लेते हैं। लेकिन सहायता करते वक्त आपको अपने भीतर छिपी ऐसी अपेक्षाओं का कुछ पता नहीं होता है।

      ...क्यों? क्योंकि वास्तव में अभी आपका मन उस ऊंचाई पर पहुंचा ही नहीं होता है कि जहां से आप किसी की सहायता करने को इच्छुक हो जाएं। अभी तो वास्तव में आप बदले में कुछ चाहते हैं इसलिए सहायता करते हैं, परंतु चूंकि यह चाहना आपके अन-कोन्शियस व सब-कोन्शियस में छिपा होता है अतः सहायता करते वक्त आपको इसका अंदाजा नहीं होता है। इसी से आप अपने को श्रेष्ठ व सीधा मानते है। यह सब चाहें तो पीछे से आती है। अब आगे से आए या पीछे से, आ तो आपके ही भीतर से रही है। सो गड़बड़ तो है ही। और यह गड़बड़ दूर करना चाहते हैं तो आप मन की कार्यप्रणाली समझकर अपने अन्य मनों को समझें तथा उनपर विजय पाएं। उसके बगैर आपका सब करना बेकार है।

      क्योंकि यह बात किसी की सहायता करने तक ही सीमित नहीं है। आपके द्वारा किए जाने वाले कार्यों में भी ऐसा ही होता है। कार्य भी आप कोन्शियस माइंड से कर रहे होते हैं और भीतर के मनों में कुछ और चल रहा होता है। इसीलिए आपके किसी कार्य का कोई परिणाम नहीं आता है। सो, थोड़ा भीतर डुबकी लगाओ, मन की कार्यप्रणाली पढ़ो और समझो, यह तो मैंने आपको प्रारंभिक बात बताई। वैसे तो मनुष्य के मन की कुल सात तहें होती हैं। और उन्हें अनुभव किए बगैर मनुष्य कभी सुखी और सफल नहीं हो सकता है। क्योंकि अभी तो आप कोई भी कार्य जो सोचकर करते हैं, वास्तव में भीतर आप उससे अलग कुछ और सोच रहे होते हैं। इसी कारण आपके कुछ भी करने के कोई परिणाम नहीं आ रहे हैं।

      सो, कुल-मिलाकर कहूं तो अपने मन को तथा उसकी कार्यप्रणाली को समझना हमारी प्रथम आवश्यकता है, और हम एक उसको छोड़ हजार काम करते हैं। बताओ, हमारे जीवन में कुछ अच्छे परिणाम आए तो भी कैसे?

- दीप त्रिवेदी

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