निश्चित ही कम्यूनिकेशन इन्सान की प्रथम जरूरत
है। दुनिया का जो कुछ भी विकास हुआ है वह कम्यूनिकेशन के कारण ही हुआ है। और भाषा तथा
शब्दों का इसमें सबसे बड़ा योगदान है। उसके बगैर न ज्ञान हो सकता था न विज्ञान।
लेकिन
हमारी दिक्कत यह है कि हम कोरा सीखने व कोरा जीने के आदी हो चुके हैं। इसलिए हम शब्दों
और भाषा का बड़ा कोरा उपयोग करते हैं। जबकि वास्तव में तो मनुष्य को अपनी चेतना से शब्दों
में रंग भरना होता है। और तभी वह शब्द उसके लिए मायने रख सकता है। तथा वह रंग भरा जाता
है शब्द को परिभाषा देकर। आज के बाद यह ध्यान रख लेना कि शब्दों को बिना परिभाषित किए
यदि आप उपयोग करने के आदी हैं तो आपका जीवन हमेशा दिशाहीन रहेगा। और यदि आपने शब्दों
की गलत परिभाषा अपना रखी होगी तो आप भटक जाएंगे। लेकिन यदि उपयोग में लाए जाने वाले
हर शब्द की आपने अपने स्वभाव व जरूरत के हिसाब से ठीक परिभाषा कर रखी होगी तो आपका
जीवन हमेशा सुख और सफलता से भरा रहेगा।
उदाहरण
के तौर पर यदि सुख की ही परिभाषा ली जाए तो हर व्यक्ति के सुख की परिभाषा अलग-अलग होती
है। किसी का सुख धन में है तो किसी का परिवार में। किसी का काम में है तो किसी का आराम
में। लेकिन वास्तव में सुख की ये तमाम परिभाषाएं ही दुःख की जड़ है। यदि आप चाहते हैं
कि सुख आपका साथ कभी न छोड़े तो उसकी परिभाषा आपको बदलनी होगी। जब, जो और जितना उपलब्ध
है, उनमें से जो सबसे ज्यादा मजा दे सकता हो उसका उपयोग करते आना सुख है। यदि आपने
सुख की यह परिभाषा अपना ली तो फिर आपको लगातार सुखी रहने से कौन रोक सकता है?
...और
ऐसा एक नहीं सारे शब्दों के मामले में है। इसलिए शब्दों को कोरा समझकर बेवजह उसका इस्तेमाल
मत करते रहो। वहीं शब्दों की गलत परिभाषा भी कभी मत करो। तथा बिना परिभाषित किए शब्दों
का इस्तेमाल तो करो ही मत। बस यह एक समझ आपको अपने जीवन बाबत पूरी क्लेरिटी करवा देगी।
यही नहीं, इससे जीवन सही दिशा में आगे बढ़ना शुरू भी हो जाएगा।
सो,
आज ही सौ काम छोड़कर पहले आप जिन-जिन शब्दों को अपने जीवन का अंग मानते हैं, उन्हें
अपनी समझ व जरूरत के हिसाब से परिभाषित कर लें। बस फिर उन परिभाषाओं के दायरे में जीवन
को आगे बढ़ाएं। देखिए! कैसे जीवन को पर लग जाते हैं।
- दीप त्रिवेदी
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