Friday, November 28, 2014

क्या वाकई आपके मन आपका कोई दोस्त हैं?


-     लो यह कैसा बेतुका सवाल पूछ लिया आपने? फेसबुक पर मेरे 440 लोग हैं। सारे रिश्तेदारों से लेकर घर-ऑफिस तक सबसे मेरे अच्छे ताल्लुकात हैं।

-     अरे बाबा गलती हुई। पर यह बताओ कि जब भी आप कोई नए शानदार वस्र पहनते हो, नई शानदार गाड़ी खरीदते हो, अच्छे मार्क्स से पास होते हो या फिर कोई अन्य एचीवमेंट करते हो तो आपको दुश्मन को नीचा दिखाने या उसे जलाने की खुशी होती है?

-     सच कहूं तो...हां, पर वे तो दुश्मन हैं। उन्हें नीचा दिखाने में तो मजा आना ही है।
-     अच्छा ईमानदारी से यह बताओ कि क्या वही खुशी आपको हर एचीवमेंट के वक्त दोस्तों को जलाने या नीचा दिखाने में नहीं होती है? हां-हां शरमाओ मत? समझो यह कि अभी हमारे मन दोस्त और दुश्मन में कोई फर्क नहीं। जानो यह भी कि मन पाताल की गहराइयों से भी गहरा है। अतः अपने को जज करने की जल्दी मत करो। अपने मन की गहराइयों में क्या छिपा है वह खोजो, और वहां जो-जो गंदगी नजर आए उसे अपने मन से निकाल बाहर फेंको। क्योंकि जीवन में सारे परिणाम हमारे मन की गहराइयों में क्या छिपा है, उसके आ रहे हैं। अतः अपने वर्तमान हाल के लिए दोस्त, दुनिया, भगवान, भाग्य या समाज को दोष देने के बजाए स्वयं को दोष देना प्रारंभ कर दो। बस यह एक कदम चमत्कार कर देगा। क्योंकि हमें सबसे बड़ा नुकसान अपने बाबत गलतफहमी पालने से हो रहा है। इसीलिए तो कबीर कहते हैं कि

बुरा जो देखन मैं चल्या, बुरा न दिख्या कोय।
मन जो आपनो झांक्यो, उससे बुरा न कोय ॥
- दीप त्रिवेदी

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