यह तय करने से पूर्व दोनों शेरों का
फर्क समझ लो। जंगल का शेर राजा होता है, खुंखार होता है और अपना जीवन अपने हिसाब से
जीता है। सर्कस के शेर के दांत-नाखून सब काट दिए गए होते हैं। उसका खुंखारपन तो जाने
कहां खो गया होता है। दुःखद परिस्थिति यह कि जिसके इशारे पर पूरा जंगल चलता होता है,
वह खुद दूसरों के इशारे पर खेल दिखाता रहता है।
यदि
आप सकर्स के शेर नहीं बनना चाहते तो अपनी इंडिविज्युअलिटी बचाकर रखें। वही आपके दांत
और नाखून हैं। यदि वह नहीं सम्भाल पाए तो धर्म व समाज के ठेकेदार आपको सर्कस का शेर
बनाने हेतु घूम ही रहे होते हैं। एकबार उनके चक्कर में आ गए फिर तो आप भी उनके इशारों
पर करतब दिखाने लग जाएंगे। कभी उनके इशारों पर शौक दबाकर दिखाएंगे तो कभी उनके इशारों
पर भूखे मरकर दिखाएंगे। और जब वे तय करेंगे उसी दिन व उसी समय पर माथा टेकने भी पहुंच
जाएंगे।
...सोच
लो! जीवन आपका है और मरजी भी आपकी है; तथा निर्णय भी आपका है। मैंने तो जो ठीक समझा
उसका इशारा कर दिया।
- दीप त्रिवेदी
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