Saturday, May 31, 2014

क्या आपकी अपने से कोई दुश्मनी है?


यदि नहीं है तो फिर क्यों बात-बिना-बात संघर्ष पर उतारू हो जाते हो? किसी ने पसंद न आने वाली बात कह दी कि संघर्ष चालू। किसी ने आपकी मान्यता का मजाक उड़ाया कि संघर्ष प्रारंभ। किसी ने एवोइड किया तो संघर्ष, और कोई आपसे आगे बढ़ गया तो स्वयं से जलनरूपी संघर्ष। किसी ने तारीफ कर दी तो उसके दो काम करने हेतु संघर्ष और किसी धर्मगुरु ने लोभ दिखाया तो मंदिर-मस्जिद-चर्च जाने हेतु संघर्ष। असफलता हाथ लगी तो आश्वासन खोजने हेतु संघर्ष, और कुछ अप्रिय घटा तो उसे स्वीकारने से संघर्ष। 

...अब इतने संघर्षों में जीओगे तो अपने लिए कुछ अच्छा कब करोगे? कहीं वाकई आपकी अपने से कोई दुश्मनी तो नहीं है?

- दीप त्रिवेदी

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