एक मेहनती और सज्जन किसान था। और धार्मिक
तो इतना कि दिन में दो बार मंदिर जाता था। लेकिन एक दिन गांव के एक शक्तिशाली साहूकार
ने धोके से उसकी जमीन हड़प ली। अब उसकी पत्नी और साथ में दो छोटे-छोटे बच्चे थे। साहूकार
से वह उलझ भी नहीं सकता था। बस परिवार को भूखों मरने की नौबत आ गई। कोई उपाय न देख
उसने मंदिर के पुजारी से साहूकार को समझाने को कहा। पुजारी ने तो दरख्वास्त सुनते ही
हाथ झटक लिए। उसने स्पष्ट कहा - यह तुम्हारे पिछले जन्मों के कर्म की सजा है, इसमें
मंदिर बीच में नहीं पड़ सकता है।
...किसान तो यह सुनते ही निराश हो गया।
उसने चकित होते हुए पूछा भी- फिर यह जो दिन में दो बार मैं मंदिर आने का पुण्य कर रहा
हूँ, उसका क्या?
पुजारी बोला- इस पुण्य का फल तुम्हें
अगले जन्म में अवश्य मिलेगा।
किसान थोड़ा क्रोधित होता हुआ बोला- पर
आज हम जो सड़क पर आ गए हैं, उसका क्या? यह जो मेरे बीवी-बच्चे भूखे मर रहे हैं...उसका
क्या?
क्या कहता पुजारी? बस इसे भगवान का न्याय
मानकर स्वीकार लो...कहकर चला गया। उधर कुछ दिन बाद उस किसान के एक मित्र ने उसे गरीबों
को न्याय दिलाने वाली किसी सामाजिक संस्था से संपर्क करने को कहा। मरता क्या न करता?
उसे मंदिर के कड़वे अनुभव के बाद कोई उम्मीद तो नहीं थी, परंतु खोना क्या है सोचकर वह
उस संस्था के पास चला गया। संस्था का मुखियां तो उसकी बात सुनते ही दंग रह गया। करीब
छः माह की कानूनी लड़ाई लड़कर उस संस्था ने किसान को उसकी जमीन वापस दिलवा ही दी।
...बस अपनी जमीन पर दोबारा पहला कदम रखते
ही किसान के मुंह से निकला- वाह रे भगवान तेरी लीला। पता पंडितों का देता है, और रहता
लाचारों की मदद करने वालों के दिलों में है।
-
दीप त्रिवेदी
No comments:
Post a Comment