Friday, May 16, 2014

दिल का महत्व समझो वरना सब बेकार है



यह जो सबको बात-बिना-बात मशीनों की तरह सबकुछ करने की जो आदत पड़ गई है, उस वजह से दिल से कुछ भी होना ही बंद हो गया है। दिखने को तो सभी धार्मिक नजर आते हैं, पर दिल से धर्म कितनों के लिए आवश्यक रह गया है? कहने को सभी देशभक्ति से ओतप्रोत हैं परंतु वास्तव में दिल से देश की चिंता कितनों को रह गई है? ...ऐसा क्यों?

          क्योंकि हमने यह महान विषय जो भावना के थे, उसे भी मशीनी बना दिया है। जो विषय दिल के थे उन्हें हमने शरीर का बना दिया है। अब आजादी के दिन गाड़ी में झंडा लगा दिया, हैपी इंडीपेंडेंस-डे का मैसेज भेज दिया, हो गया...। थिएटर में जन-गण-मन पर खड़े हो गए, हो गया? मैं कह रहा हूँ कि इन मशीनी कार्यों से कहीं देशभक्ति जागती है? इससे कहीं देश की कुछ सेवा होती है? हो जाती तब तो पूरा देश यह कर रहा है, फिर भी देश का यह हाल क्यों है?

          वैसा ही धर्म के मामले में है। चारों ओर सभी मंदिर, मस्जिद, चर्च वगैरह में जा रहे हैं। और जब इतना कर लिया तो और क्या चाहिए? ...प्राण लोगे क्या? यानी अब हालात यह हो चुके हैं कि सभी धार्मिक, चारों ओर चर्चा भी धर्म की लेकिन धर्म कहीं नजर नहीं आ रहा है। राज पूरे विश्‍व पर चोरी, दगाबाजी व झूठ का ही है। कारण साफ है, मशीन की तरह करोगे तो दिल से करना भूल ही जाओगे।

          अतः मेरा निवेदन है कि जो विषय दिल के भीतर महसूस करने के हैं, उन्हें शारीरिक तौर पर करने की फॉर्मेलिटी मत बना लो, वरना एक दिन दिल से करना ही भूल जाओगे।

    - दीप त्रिवेदी




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