कल मलेशिया की एक अदालत ने निर्णय दिया कि ‘अल्लाह’ का नाम सिर्फ
मुस्लिम इस्तेमाल कर सकते हैं। यह वाकई चौंकाने वाली बात है। क्योंकि यह फतवा अगर किसी
और का होता तो शायद हम चर्चा ही न करते, ऐसे फतवे तो आते ही रहते हैं। परंतु कोर्ट...?
खैर, इसमें कई
बातें ध्यान में लेने जैसी है। पहली तो क्या यदि कोई क्रिश्चियन या हिंदू दिल से अल्लाह
को याद करना चाहे तो वह नही कर सकता है? यह तो अल्लाह को फैलाने की जगह रेस्ट्रिक्ट
करने वाला हुआ।
चलो यह भी छोड़ो।
पर यदि कभी बेन्जामिन फैंकलिन ने कह दिया होता कि मैंने इलेक्ट्रीसिटी खोजी अवश्य है
पर उसका इस्तेमाल सिर्फ किश्चियन कर सकते हैं, तो क्या होता? यदि एडीसन ने बल्ब खोजने
के बाद कह दिया होता कि सिर्फ अमेरिका में इसका उपयोग हो सकेगा तो क्या होता? जब विज्ञान
इतना उदार है, और करुणा से भरा हुआ है तो फिर धर्म को तो और भी कितना उदार होना चाहिए?
और तीसरी बात
जो मुझे हमेशा से आश्चर्य में डालती है वह यह कि अंदर-ही-अंदर अधिकांश मुस्लिम ऐसी
बातों का समर्थन नहीं करते, परंतु सामने नहीं आते। जब अपने भविष्य को लेकर वे स्वयं
आगे नहीं आते तो दूसरा क्यों आएगा?
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