- लो, उलटा चोर कोतवाल को डांटे
मैं तो दिन-रात तुम्हारे आगे-पीछे घूमता हूँ
कुछ नहीं तो दिन के दो-चार घंटे मेरे साथ बिता लिया करो
कुछ देर खेल-कूद लो
कभी एकाध प्यारा-सा संगीत सुन लो।
पर नहीं…
तुमको तो बस जब देखो जरूरी काम नजर आ जाते हैं
ऐसी भागा-दौड़ी मचाए हुए हो
मानो पूरा विश्व ही तुम्हें चलाना पड़ रहा हो।
मैं कहता हूँ- अच्छा खा-पी के ही मेरा अनुभव कर लो
तो तुम्हें हर अच्छे खाने में कैलोरी नजर आ जाती है
अच्छी गाड़ी में भी तुम दूसरों को दिखाने हेतु घूमते हो
इसलिए उसमें भी तुम्हें मेरा अनुभव नहीं होता।
- बात तो तुम्हारी ठीक है पर क्या करूं, भविष्य भी तो बनाना है।
- भविष्य बनाना तो एक आदत है
एकबार लग गई तो मरते दम-तक नहीं छूटेगी
परंतु मेरी बात ध्यान से सुन लो
मुझे रोज थोड़ा-थोड़ा साथ लेकर नहीं चले तो मैं रूठ जाऊंगा
और मैं रूठ गया
तो मन की पचासों बीमारियां पकड़वाकर ही दम लूंगा।
और छोडूंगा तो शरीर को भी नहीं
उसमें भी दसियों बीमारी घुसेड़ दूंगा।
यह याद रख लेना कि सारे मानसिक और शारीरिक रोगी
मेरी अवहेलना का ही भुगत रहे हैं।
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