Monday, October 28, 2013

बंदरों की क्लास


एक बुजुर्ग, समझदार व बुद्धिमान बंदर नियमित रूप से रोज सुबह अपने जंगल के सभी बच्चों की क्लास लिया करता था। क्लास क्या, बच्चे उत्सुकता जाहिर करते और वह बुद्धिमान बुजुर्ग बंदर सबकी जिज्ञासाएं शांत कर दिया करता था। एक दिन क्लास में अचानक एक नन्हें बंदर ने उस बुजुर्ग बंदर से बड़ा अजीब सवाल पूछा। उसने पूछा कि क्या यह सत्य है कि इन्सान हमारा ही सुधरा हुआ स्वरूप है?
सवाल सुनते ही उस बुजुर्ग बंदर ने बड़ी अजीब दृष्टि से बंदर के उस बच्चे को देखा। फिर थोड़ा मुस्कुराते हुए बोला- इसे समझने हेतु थोड़ा बंदर और मनुष्य का फर्क समझ लो। माना हम बंदर अक्सर उछलते-कूदते रहते हैं, परंतु अपनी मस्ती हेतु। …जबकि इन्सान तो बात-बिना-बात ही, और वह भी दिन-रात उछलता रहता है। जरा-सा किसी ने एव्हॉइड किया नहीं कि उछल पड़ा। किसी ने थोड़ी-सी बुराई करी नहीं कि उछल पड़ा। कोई दूसरा आगे बढ़ा तो उछल पड़ा, और खुद के धंधे में कोई नुकसान हुआ तो भी उछल पड़ा। क्रोध, फ्रस्ट्रेशन, जलन व चिंता के मारे तो दिन में पचासों बार उछलता रहता है। और-तो-और, चैन से सोता भी नहीं। जरा-सा कोई डरावना सपना देखा नहीं कि उछला नहीं। अरे, हम बंदर तो अपनी मस्ती हेतु खेल-कूद में उछलते हैं, ये इन्सान खुद तो उछलते ही हैं, एक-दूसरे को उछालते भी रहते हैं। अतः यह समझ लो मेरे बंदर-बच्चों कि इन्सान हमारा स्वरूप जरूर है, परंतु सुधरा हुआ नहीं बल्कि हमारा विकृत स्वरूप है। और तुमलोग इस बात का खास ध्यान रखना जो भी ठीक से बंदर नहीं हो पाएगा वह अगले जन्म में विकृत होकर इन्सान हो जाएगा।
सब बंदर-बच्चे एकसाथ- ना बाबा ना! हम जी जान लगाएंगे पर अपने बंदरपन को विकृत नहीं होने देंगे।

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