- आप कौन हैं?
- मैं भगवान हूँ
मंदिर में जिस श्रद्धा से तुमने फूल चढ़ाए
मैं समझ गया कि तुम मेरे सच्चे भक्त हो
बस तुम्हारे साथ रहने चला आया।
- देखो माफ करो!
मेरा-आपका रिश्ता मंदिर तक का ही ठीक है
आप मूर्त-रूप ही अच्छे हो
मैं आपके हिसाब से चल नहीं सकता।
ना बाबा ना, आप इम्प्रेक्टिकल और जी का जंजाल हैं
और फिर आज के जमाने में जीने हेतु क्या-क्या करना पड़ता है
इसका आपको अंदाजा नहीं है।
अतः आप जहां से आए थे वहीं लौट जाओ
मैं आपको अपने घर पे नहीं रख सकता
हां, कल से फूल चढ़ाते वक्त ध्यान रखूंगा कि श्रद्धा का अभिनय
नियंत्रण के बाहर न हो जाए।
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