एक पेड़ पर कांव-कांव करते कौए के पास एक कोयल आकर बैठी।
बैठते ही कोयल ने कुहू-कुहूकर बड़ा इठलाते हुए गाना शुरू कर दिया।
...बेचारा कौआ कोयल की मधुर आवाज सुनते ही चुप हो गया
इस पर कोयल घमंड भरे स्वर में बोली
देखा, मेरी आवाज कितनी मधुर है
और एक तुम हो, पूरे-के-पूरे कर्कश।
कोयल की ऐसी अहंकार से भरी वाणी सुनकर
कौआ बड़ी गंभीरतापूर्वक बोला- कोयल! माना तुम्हारी वाणी मधुर है,
परंतु तुम यह भूल रही हो कि यह भगवान की तुम पर कृपा है
...इसमें तुम्हारा कुछ भी नहीं
फिर भी तुम उस पर घमंड करती फिर रही हो।
जबकि मेरी आवाज भले ही कर्कश है
परंतु मैं इसमें अपना कोई दोष नहीं मानता
मैंने तो अपनी कर्कश आवाज को भी
भगवान की इच्छा के तौर पर स्वीकारा हुआ है।
और यही मेरा वो परमज्ञान है
जो मुझे तुमसे हजारों गुना पवित्र बना देता है।
बैठते ही कोयल ने कुहू-कुहूकर बड़ा इठलाते हुए गाना शुरू कर दिया।
...बेचारा कौआ कोयल की मधुर आवाज सुनते ही चुप हो गया
इस पर कोयल घमंड भरे स्वर में बोली
देखा, मेरी आवाज कितनी मधुर है
और एक तुम हो, पूरे-के-पूरे कर्कश।
कोयल की ऐसी अहंकार से भरी वाणी सुनकर
कौआ बड़ी गंभीरतापूर्वक बोला- कोयल! माना तुम्हारी वाणी मधुर है,
परंतु तुम यह भूल रही हो कि यह भगवान की तुम पर कृपा है
...इसमें तुम्हारा कुछ भी नहीं
फिर भी तुम उस पर घमंड करती फिर रही हो।
जबकि मेरी आवाज भले ही कर्कश है
परंतु मैं इसमें अपना कोई दोष नहीं मानता
मैंने तो अपनी कर्कश आवाज को भी
भगवान की इच्छा के तौर पर स्वीकारा हुआ है।
और यही मेरा वो परमज्ञान है
जो मुझे तुमसे हजारों गुना पवित्र बना देता है।
No comments:
Post a Comment