Monday, October 7, 2013

शारीरिक ऊर्जा कम तो नहीं पड़ रही?



- अरी ऊर्जा, तुम तो आजकल दिखती ही नहीं
  तेरे बगैर मैं बड़ा थका-थका सा रहता हूँ
- वह तो रहोगे ही। तुम ऐसा कोई काम ही नहीं करते
  कि मैं प्रकट हो सकूं
- मतलब...?
- मतलब साफ है। मैं आती हूँ नियमित व्यायाम से
  और तुम व्यायाम करने के नाम से ही भागते हो
  नींद मेरा सबसे बड़ा स्रोत है
  रात को समय पे सो जाओ और सुबह सूर्योदय के साथ उठ जाओ
  देखो, मैं दिनभर कैसे तुम्हारे साथ रहती हूँ
  परंतु रात को तो तुमको चेटिंग करना, देर तक घूमना,
  टी.वी. देखना, और भी न जाने क्या-क्या
  फालतू के कार्य सूझते हैं
  और भोजन या तो तुम कम करोगे या ज्यादा
  नियमित और संतुलित कभी नहीं करोगे
  जब तुम मुझे प्रकट होने के सारे दरवाजे ही बंद कर दोगे
  तो मैं प्रकट होऊं भी तो भला कैसे?

- अच्छा तो यह बात है
  तब तो मैं आज से ही नियमित हो जाता हूँ
- हो ही जाना चाहिए।
  यह क्या दिन में देरी से उठना, रात को जगना
  व्यायाम से भागना और फिर दिनभर थके-थके रहना।
  सीधी बात समझ लो कि मृत्यु हमेशा के लिए शांति है
  और थकान टुकड़े-टुकड़े में आधी-अधूरी शांति है
  यानी थकने और मरने में कोई फर्क नहीं
  अतः आज और अभी से नियमित हो जाओ
  और जीने का मजा लो
  ...कुछ लुटा नहीं जा रहा...
- प्रोमिस! आज के बाद देख लेना
  तुमने राह दिखा दी, मैं पकड़ लूंगा।
  फिर कभी थका-थका नहीं दिखूंगा।

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