यह गलतफहमी मत पालना कि अवाम...लीडरों, धर्मगुरुओं, बड़े व्यवसायियों या बड़े-बड़े अभिनेताओं के पीछे है। नहीं, वास्तव में तो ये सब आपके पीछे दौ़ड़ते रहते हैं। हर लीडर वही नारा देना चाहता है जो जनता को भा जाए। आप जिस नारे को ठुकरा देते हैं लीडर उसे बदलने को मजबूर हो जाता है। वैसे ही व्यावसायी भी वही प्रोडक्ट बनाना चाहते हैं जो आपको जंच जाए। यदि आप कोई प्रोडक्ट रिजेक्ट कर देते हैं तो तुरंत वह प्रोडक्ट बाजार से वापस खींच लिया जाता है। वैसे ही फिल्म निर्माता भी आम जनता की पसंद का खयाल रखकर ही फिल्में बनाते हैं। और धर्मगुरु...! वे तो बेचारे पूरी तरह आपके ही आगे-पीछे घूमते रहते हैं। वे वो ही बात करते हैं, जो आप सुनना चाहते हैं। कोई भी क्रांतिकारी बात कर आपका जीवन सुधारने की उनमें हिम्मत नहीं। भला अपनी अच्छीखासी चल रही दुकान को वो क्यों जोखिम में डालने लगे?
सो, आप अपनी सत्ता को पहचानिए। आप हर क्षेत्र में अपनी सोच और पसंद का स्तर बढ़ाइए, सब अपनेआप लाइन पर आ जाएंगे।
- दीप त्रिवेदी
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