Saturday, February 22, 2014

भगवान तू वहां तो नहीं है- जहां सब कहते हैं।



 एक परदेशी का पूरा सामान चोरी हो जाता है। अपने गांव लौट जाने के पैसे भी उसके पास नहीं होते। अब अनजान शहर में करे क्या? तीन रोज भूखे-प्यासे भटकते-भटकते बीत जाते हैं। मरियल-सी हालत हो जाती है उसकी। आखिर सोचता है कि भले लोगों को अपनी दास्तान सुनाऊं, शायद कोई भाड़े के और खाने-पीने के पैसे दे दे। अब भले लोग तो मंदिर-मस्जिद या चर्चों में ही मिल सकते हैं। बस ऐसा सोच वह एक मंदिर के बाहर खड़ा हो गया। हर आने-जाने वाले को वह अपनी दास्तान सुनाने लगा। ...पर कोई सुने तब न। संध्या भी ढल गई पर एक को भी उस पर तरस नहीं आया।
     
            ...आखिर वह घोर निराशा की हालत में निकट की गलियों में घूमने लगा। तभी एक मदिरालय से निकले दो व्यक्तियों की उस पर नजर पड़ी। उसकी हालत उसके कष्टों का बयान कर ही रही थी। और पूछने पर तो परदेशी ने रोते हुए पूरा गुबार ही निकाल दिया। वे दोनों तत्क्षण उसे अपने साथ मदिरालय ले गए। उसे सबसे पहले भोजन करवाया। इतनी देर में पूरे मदिरालय में उसकी हालत के चर्चे फैल चुके थे। देखते-ही-देखते उसकी सहायता हेतु पांच-सौ रुपये का कलेक्शन भी एकत्रित हो गया। ...यह देख वह परदेशी गदगद होता हुआ बोला- वाह रे भगवान तेरी लीला। तू रहता कहां है और पता कहां का देता है...।
     

- दीप त्रिवेदी


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