...आखिर वह घोर निराशा की हालत में निकट की गलियों
में घूमने लगा। तभी एक मदिरालय से निकले दो व्यक्तियों की उस पर नजर पड़ी। उसकी हालत
उसके कष्टों का बयान कर ही रही थी। और पूछने पर तो परदेशी ने रोते हुए पूरा गुबार ही
निकाल दिया। वे दोनों तत्क्षण उसे अपने साथ मदिरालय ले गए। उसे सबसे पहले भोजन करवाया।
इतनी देर में पूरे मदिरालय में उसकी हालत के चर्चे फैल चुके थे। देखते-ही-देखते उसकी
सहायता हेतु पांच-सौ रुपये का कलेक्शन भी एकत्रित हो गया। ...यह देख वह परदेशी गदगद
होता हुआ बोला- वाह रे भगवान तेरी लीला। तू रहता कहां है और पता कहां का देता है...।
- दीप त्रिवेदी
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