स्टीव
बचपन से ही बड़े शैतान, जिज्ञासु तथा दृढ़ इरादे वाले थे। और नटखट व शैतान तो इतने थे
कि बड़े-बड़े शैतान बच्चों को शरमा दे। लेकिन साथ ही संजीदा भी पूरे थे। आज मैं उनके
जीवन की जो बात बताने जा रहा हूँ वह नन्हें स्टीव की नहीं, बल्कि युवा स्टीव की है।
उस समय स्टीव की उम्र करीब 13 वर्ष थी।
हुआ
यह था कि एक दिन उनके हाथ में एक लाइफ मैगजीन पड़ी जिसके मुखपृष्ठ पर बड़ा कष्ट भोग रहे
दो अफ्रीकन बच्चों की तस्वीर थी। यह देख स्टीव काफी विचलित हुए। उन्हें यह बात ही नहीं
जंची कि भगवान के होते-सोते इतने छोटे बच्चों को इतना कष्ट उठाना पड़े। बस वे वह मैगजीन
लेकर सीधे निकट के एक चर्च के पादरी के पास पहुंच गए, और उन्होंने उससे सीधा सवाल पूछा-
क्या भगवान सबकुछ जानता है?
वह पादरी
बोला- हां, बेटा।
अबकी स्टीव
ने वह मैगजीन उनके हाथ में थमाते हुए पूछा- तो क्या भगवान इन बच्चों का कष्ट भी जानता
है?
पादरी
बोला- बिल्कुल!
इस पर
स्टीव ने क्रोधित होते हुए पूछा- तो फिर भगवान इनका कष्ट दूर क्यों नहीं कर देता?
इस पर
पादरी क्या कहता? बस गोल-मोल रटे-रटाए जवाब दे दिए। ...लेकिन होशियार स्टीव उससे कहां
संतुष्ट होने वाले थे। बस उस दिन के बाद उन्होंने चर्च जाना छोड़ दिया। लेकिन उनको उनका
उत्तर मिल चुका था। आदमी को अपनी तकदीर अपनी मेहनत व इंटेलिजेंस के बल पर स्वयं बनानी
होती है। और उन्होंने एपल की स्थापना कर अपनी यह फिलोसोफी सिद्ध भी कर दी। आज उनके
जन्मदिन पर मैं ऐसे प्रज्ञावान स्टीव जॉब्स को सलाम करता हूँ। और आपसे भी अपने जीवन
को बढ़ाने हेतु ऐसी इंटेलिजेंस जगाने की गुजारिश करता हूँ।
- दीप
त्रिवेदी
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