मैं
प्यार हूँ। वैसे तो इस शब्द से सभी वाकिफ हैं, परंतु मेरी सच्चाई से बहुत कम लोग ही
परिचित हैं। मैं दरअसल इस प्रकृति की सबसे बड़ी ऊर्जा हूँ। जहां मैं नहीं, वहां कुछ
भी नहीं। अतः अपने छोटे-मोटे मिलन को प्यार मानकर मेरी तौहीन मत करना। इस प्रकृति में
चारों ओर मेरे कारण ही बड़े-बड़े कार्य हो रहे हैं। समुद्र को चांद से प्रेम है तो उसमें
उफान आ रहा है। बादलों को हरियाली से प्रेम है जो उनसे आकर्षित होकर बरस पड़ते हैं। यह लोहे का आग से प्रेम है जो आग
का सेक देते ही वह पिघल जाता है। यह स्पेस का चांद तारों से प्रेम ही है जो तमाम चांद-तारों
को वो अपने में समाए हुए है। यह पेड़-पौधों का सूर्य की रोशनी से प्रेम ही है कि उनकी
रोशनी पाते ही वे फलने-फूलने लगते हैं। कुल-मिलाकर कहने का तात्पर्य यह कि पूरी प्रकृति
में सबकुछ प्रेम की शक्ति से ही हो रहा है।
ठीक
वैसा ही मनुष्य के जीवन में भी है। मनुष्य भी दूसरे मनुष्य से प्यार करे बगैर या दूसरे
का प्यार पाए बगैर निखर नहीं सकता है। वे दुर्भाग्यशाली होते हैं जिनको जीवन में प्यार
नहीं होता। और वे बकवास करते हैं जो लोगों को प्यार के खिलाफ संन्यास के लिए उकसाते
हैं या जो प्यार को पाप कहते हैं।
लेकिन
यह भी ध्यान रख लेना कि ठीक उसी तरह जो लोग प्यार जरूरत के आधार पर करते हैं, या प्यार
में पजेसिव हो जाते हैं; वे भी मेरा अपमान ही कर रहे हैं। क्योंकि मेरा वास्तविक स्वरूप
तो ऊर्जा का है, यदि मैं हूँ तो कुछ बड़ा व धमाकेदार होना ही चाहिए। यदि दो व्यक्तियों
में वाकई प्यार है तो एक-दूसरे की ऊर्जा पाकर उनसे महान कार्य होने ही चाहिए। एक-दूसरे
के साथ से उनके जीवन में आनंद व मस्ती का राज होना ही चाहिए। ...वरना समझ लेना कि प्यार
के नाम पर आप किसी और को पाल रहे हैं।
अतः
इस वेलेन्टाइन-डे पर मैं प्यार आपसे यह निवेदन करता हूँ कि मुझे खोजो, मुझे पाओ परंतु
मेरे नाम पर अपनी वर्तमान जरूरतें पूरी कर मुझे बदनाम मत करो। मुझे यदि आपने वास्तव
में पाया है तो सुख, शांति व सफलता के रूप में परिणाम आने ही चाहिए। बस आज वेलेन्टाइन-डे
पर आपको मेरा वास्तविक स्वरूप मिले, इस शुभकामना के साथ अपनी बात यहीं समाप्त करता
हूँ।
- दीप त्रिवेदी
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