यदि नेता लोग स्ट्रेटेजी जनता को मूर्ख समझकर बनाते हैं, तो वे पूरी तरह गलत भी नहीं हैं। क्योंकि ताली हमेशा दो हाथों से बजती है।
* यदि इतने भ्रष्टाचार के बावजूद येदुरप्पा को दस प्रतिशत वोट मिलते हैं, तो यह बात जनता की मूर्खता सिद्ध करती ही है।
* यदि तमिलनाडु में करुणानिधि को 2-G घोटाले के बाद भी जयललिता से सिर्फ चार-पांच पर्सेंट वोट कम मिलते हैं, तो बात फिर से सिद्ध होती ही है।
* यदि हर चुनाव के पहले बीजेपी बार-बार राम मंदिर का मुद्दा गरमा पाती है तो जनता मूर्ख है ही।
* यदि 2-G व कोयला जैसे घोटालों में देश का संसाधन लुटा देने के बाद कांग्रेस फूड सिक्योरिटी बिल के बल पर फिर चुनाव जीतने के सपने देखती है, तो कहीं-न-कहीं जनता मूर्ख है ही। यानी ताली दो हाथों से ही बज रही है।
ऐसा क्यों...?
क्योंकि जनता अपने छोटे-छोटे जात-पात व धर्म जैसे स्वार्थों को देश के मुकाबले अधिक अहमियत देती है। एकबार वह देश के लिए वोट कर दे, या जात-पात से ऊपर उठकर भ्रष्ट व गुंडे तत्वों को चौतरफा हरा दे, तो सब रातोंरात सीधे हो जाएं। लेकिन होता उलटा है। भ्रष्ट व गुंडा-तत्व ज्यादा वोटों से जीत रहे हैं। फिर सिर्फ नेताओं को दोष देना गलत है। क्योंकि यह ध्यान रखना ही होगा कि ताली दो हाथों से ही बज रही है।
- दीप त्रिवेदी
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