Tuesday, February 11, 2014

ऐसी दीवानगी हो तो बात बने एडीसन की दीवानगी का एक किस्सा



यह बात उन दिनों की है जब एडीसन बल्ब बनाने हेतु फिलामेंट की खोज में डूबे हुए थे। न जाने कितने दिन एडीसन पहले ही लेबोरेटरी में गुजार चुके थे। हजारों फिलामेंट आजमा चुके थे। परंतु बल्ब था कि जलने का नाम ही नहीं ले रहा था। और एडीसन भी एडीसन ही थे जो ना तो हताश हो रहे थे और ना ही थक रहे थे। उलटा हर बीतते दिन के साथ उनका उत्साह और विश्‍वास बढ़ता ही जा रहा था। और प्रयोगों में ध्यान तो ऐसा लगा हुआ था कि उन्हें बल्ब रोशन करने के अलावा और कुछ सूझ ही नहीं रहा था।

             उसी दौरान की यह घटना है। एक दिन एडीसन प्रयोगों में ऐसे तल्लीन थे कि वे भोजन करना ही भूल गए। जब दोपहर भी चढ़ गई और एडीसन भोजन हेतु नहीं पहुंचे तो उनके सेवक ने भोजन की प्लेट प्रयोगशाला में ही उन्हें परोस दी। लेकिन एडीसन का पूरा ध्यान उस फिलामेंट की खोज में लगा हुआ था जो बल्ब रोशन कर सके। सो उन्होंने भोजन पर कोई ध्यान नहीं दिया। उधर कुछ देर बाद उनका एक साथी वैज्ञानिक उन्हें खोजते हुए वहां आ पहुंचा। संजोग से उन्होंने भी अब तक भोजन नहीं किया था। और माजरा भी कुछ ऐसा जमा था कि एडीसन प्रयोग में डूबे हुए थे और भोजन सामने पड़ा था। उधर उस साथी वैज्ञानिक को भूख लगी ही हुई थी, बस वे पूरा भोजन चट कर गए। इधर कुछ देर पश्चात् एडीसन भी प्रयोग से मुक्त हुए, और मुक्त होते ही उनकी निगाह पहले मित्र पर और फिर भोजन की खाली प्लेट पर पड़ी। यह दृश्य देखते ही उन्होंने तुरंत मित्र से कहा- देखा, फिलामेंट न खोज पाने के चक्कर में मैं पूरा भोजन ही चट कर गया।

             ...मित्र तो बुरी तरह चौंक गया। क्योंकि एडीसन ने तो अन्न का एक दाना तक ग्रहण नहीं किया था। आप भी चौंक जाइए; जो अपने काम में इस कदर डूब सकता है कि भोजन किया कि नहीं उस तक का होश न हो, वही एडीसन बन सकता है। साथ ही आप समझ जाइए कि आप में भी जब तक ऐसी दीवानगी नहीं होगी, तब तक आप कभी कोई बड़ा व परिणामकारी कार्य नहीं कर पाएंगे।

 - दीप त्रिवेदी

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